चावल की कीमतों में बढ़ोतरी कर सरकार मुनाफाखोरी पर लगाएंगी रोक, 15 प्रतिशत की बढ़ी खुदरा कीमतें

नई दिल्ली। चावल की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए हर उपाय किए जा रहे हैं। बाजार में उपलब्धता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा और मुनाफाखोरी पर लगाम लगाई जा रही है।
खरीफ मौसम की अच्छी फसल, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास पर्याप्त भंडार एवं चावल निर्यात के नियमों में सख्ती के बावजूद घरेलू मूल्य बढ़ रहे हैं।

15 प्रतिशत की बढ़ी खुदरा कीमत

पिछले एक वर्ष में चावल की खुदरा कीमतों में लगभग 13 से 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण के लिए सरकार का पहला प्रयास बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने का है। इसके लिए खुला बाजार बिक्री योजना (घरेलू) के तहत सरकार ने साप्ताहिक 26वीं ई-नीलामी में चावल की मात्रा बढ़ा दी है।
25वीं साप्ताहिक ई-नीलामी में 3300 टन चावल बेचा गया था, जिसे बढ़ाकर अब 13 हजार 164 टन कर दिया गया है। खाद्यान्न में चावल के साथ गेहूं की भी बड़ी मांग होती है। इसके चलते खुले बाजार में इस सप्ताह 3.46 लाख टन गेहूं की भी बिक्री की गई। दोनों अनाजों को खुले बाजार में साप्ताहिक बिक्री खुदरा मूल्यों में वृद्धि को तत्काल प्रभाव से रोकने के उद्देश्य से की जा रही है। अभी एक लाख 80 हजार टन चावल की और बिक्री होनी है।

जमाखोरी को रोकने का प्रयास

खुला बाजार बिक्री योजना में भाग लेने वाले बोलीदाताओं से संबंधित नियमों को लचीला बनाया गया है। एलटी बिजली कनेक्शन वाले बोलीदाता अब सिर्फ 50 टन गेहूं और एचटी बिजली कनेक्शन वाले बोलीदाता एक बार में सिर्फ 250 टन गेहूं खरीद सकते हैं।
ऐसी पहल जमाखोरी रोकने और यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि बोलीदाता द्वारा खरीदा गया अनाज बाजार में जारी किया जा सके। पिछले सप्ताह ई-नीलामी में चावल की खरीदारी की भी न्यूनतम एक टन और अधिकतम दो हजार टन की सीमा तय कर दी गई है।

मुनाफाखोरी पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी

दो दिन पहले ही केंद्र सरकार ने चावल प्रसंस्करण उद्योग संघों के साथ बैठक के दौरान चावल की खुदरा कीमत में तत्काल प्रभाव से कमी लाने का निर्देश दिया है। साथ ही मुनाफाखोरी पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी जारी की है।
उल्लेखनीय है कि स्टाक में पर्याप्त चावल होने के बावजूद इसकी मुद्रास्फीति दर पिछले दो वर्षों से 12 प्रतिशत से ज्यादा है और लगातार बढ़ रहा है, जो चिंता का कारण है। सरकार का मानना है कि थोक और खुदरा विक्रेताओं के लाभ के अंतर में भारी वृद्धि हुई है, जिसे नियंत्रित करने की जरूरत है।
कारोबारियों से कहा गया है कि जहां अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) एवं वास्तविक खुदरा मूल्य के बीच बड़ा फासला है, वहां तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप की जरूरत है। सरकार को यह भी चिंता है कि बफर स्टाक से अच्छी गुणवत्ता वाले चावल को खुले बाजार में जब 29 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराया जा रहा है तो खुदरा बाजार में यह 40 रुपये से ज्यादा कैसे बिक रहा है।

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