शनि से ज्यादा खतरनाक है ये ग्रह, जीवन को नरक बना देती है इनकी चाल
नवग्रह में शनि एकमात्र ऐसे ग्रह हैं, जिनसे लोग सबसे ज्यादा भय खाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के खगोल खंड अनुसार शनि सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।शास्त्रनुसार शनि को पापी ग्रह माना गया है। शनि को मारक, अशुभ व दुख का कारक माना जाता है। शास्त्र उत्तर कालामृत के अनुसार शनि कमजोर स्वास्थ्य, बाधाएं, रोग, मृत्यु, दीर्घायु, नंपुसकता, वृद्धावस्था, काला रंग, क्रोध, विकलांगता व संघर्ष का कारक ग्रह माना गया है। वास्तविकता में शनि ग्रह न्यायाधीश है जो प्रकृति में संतुलन पैदा करता है व हर प्राणी के साथ न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता व अस्वाभाविकता और अन्याय को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्हीं को प्रताड़ित करता है।
शनि से ज्यादा खतरनाक हैं राहु केतु, जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है। यह छाया ग्रह माने गए हैं। इनकी छाया जिस किसी पर पड़ जाती है, उस व्यक्ति का बुरा दौर इस कदर शुरू हो जाता है की साया भी साथ छोड़ जाता है। ये दोनों ग्रह मिलकर किसी भी समझदार व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट कर देते हैं। जब इनकी महादशा का आरंभ होता है तो उस स्थिती में व्यक्ति स्वयं अपना दुश्मन बन जाता है। अपनी बनी बनाई साख को मिट्टी में मिलाते देर नहीं लगाता। ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है की राहु केतु शनि के ही अनुचर हैं। जब राहु केतु का अशुभ प्रभाव आरंभ होता है, वह शनि के न्याय का ही हिस्सा होता है।
प्रत्येक जातक की कुंडली में अशुभ ग्रहों की स्थिति अलग-अलग रहती है। कुंडली में कुल बारह भाव होते हैं सभी भाव के अलग-अलग स्वामी होते हैं। आप खुद ही देख सकते हैं शनि, राहु और केतू ग्रह खराब चल रहे हैं।
शनि कफ प्रकृति का होता है। छाती, पैर, पांव, गुदा, स्नायुतंत्र आदि अंगों का यह जनक है। इसके दुष्प्रभाव से अत्यंत घातक और असाध्य रोग होते हैं। कैंसर, लकवा, ट्यूमर, थकान, मानसिक विकृतियां आदि रोग शनि ग्रह के दुष्प्रभाव के कारण ही होते हैं।
राहु और केतु दो छाया ग्रह हैं। राहु अल्सर तथा अज्ञात भय उत्पन्न करता है। इससे सर्पदंश का भय बना रहता है। यह काल सर्पयोग का मुख्य कारण है जो जीवन को नरक बनाकर रख देता है। राहु चंद्रमा के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के फोबिया को जन्म देता है।
केतु के दुष्प्रभावों के कारण भी अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं। केतु भी मंगल के समान शल्यक्रिया का सामना करता है। जब ये ही ग्रह अनुकूल होते हैं तो मनुष्य को यश, र्कीति, धन-धान्य, भाग्यवृद्धि कारक होते है।
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