Bihar: सीट शेयरिंग के फॉर्मूले ने कैसे बिगाड़ा कांग्रेसी नेताओं का खेल? NDA से पार पाने की तैयारी

पटना । बिहार में काफी मशक्कत के बाद ‘इंडिया गठबंधन’ में सीट बंटवारे पर समझौता हो गया है। प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में आरजेडी 26, कांग्रेस 9 और वामपंथी दल 5 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

कांग्रेस जिन सीटों पर बेहतर चुनावी मुकाबला कर सकती थी, उनमें से कई सीटें आरजेडी ने अपने पास रख ली हैं। इस तरह इंडिया गठबंधन में भले ही सीट शेयरिंग पर फाइनल मुहर लग गई है, लेकिन सीटों की अदला-बदली से कांग्रेस के साथ-साथ आरजेडी के दिग्गज नेताओं के चुनाव लड़ने की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं। ऐसे में अब देखना है कि इंडिया गठबंधन कैसे एनडीए से पार पाता है?

इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत आरजेडी बिहार में बड़े भाई की भूमिका में है। आरजेडी के हिस्से में जहानाबाद, गया, नवादा, औरंगाबाद, बक्सर,पाटलिपुत्र, मुंगेर, जमुई, बांका, बाल्मीकि नगर, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, वैशाली, सारण, सिवान, गोपालगंज, उजियारपुर, दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया और हाजीपुर सीटें आई हैं।

वहीं, कांग्रेस के खाते में किशनगंज, कटिहार, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पश्चिमी चंपारण, पटना साहिब, सासाराम, महाराजगंज और समस्तीपुर सीट आई हैं। वाम मोर्चा को पांच सीटें मिली हैं, जिसमें सीपीआई बेगूसराय सीट पर चुनाव लड़ेगी तो सीपीएम खगड़िया सीट पर किस्मत आजमाएगी। भाकपा-माले को आरा, काराकाट और नालंदा की सीटें मिली हैं।

सीट शेयरिंग से किसे लगा झटका

लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए बने इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा होते ही कई दिग्गज नेताओं का खेल पूरी तरह से बिगड़ गया है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया कांग्रेस को देने के बजाय अपने पास रखी है। इस सीट से पप्पू यादव ने चुनाव लड़ने की चाह में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया है। आरजेडी ने सुपौल सीट भी अपने खाते में रखी है, जहां से पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन 2009 में सांसद रही हैं। मधुबनी और औरंगाबाद जैसी सीट भी लालू यादव ने अपने पास रखी हैं तो बेगूसराय लोकसभा सीट लेफ्ट को दे दी है।

पप्पू से लेकर शकील तक मायूस

पांच बार सांसद रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी काफी समय से कर रहे थे। पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने के चलते ही पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय किया था, लेकिन आरजेडी ने यह सीट अपने पास रही और बीमा भारती को प्रत्याशी भी बना दिया है। पप्पू यादव अब भी चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े हैं और फ्रेंडली फाइट की बात कर रहे हैं। कांग्रेस रजामंद नहीं होती है तो उनके पास विकल्प निर्दलीय चुनाव लड़ने का होगा।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता शकील अहमद मधुबनी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। इस सीट से सांसद भी रह चुके हैं, लेकिन यह सीट आरजेडी के खाते में चली गई है। 2019 में यह सीट मुकेश सहनी की पार्टी के हिस्से में चली थी, जिसके चलते शकील अहमद निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए थे और वो दूसरे नंबर पर रहे थे जबकि वीआईपी प्रत्याशी को उनसे भी काफ़ी कम वोट मिला था। कांग्रेस इस बार भी मधुबनी सीट लेने में सफल नहीं हो सकी, जिसके चलते शकील अहमद एक बार फिर से मायूस हैं।

निखिल और प्रवेश का बिगड़ा गेम

कांग्रेस के दिग्गज नेता निखिल कुमार की औरंगाबाद सीट आरजेडी के हिस्से में चली गई है। इसके चलते निखिल कुमार के चुनाव लड़ने की उम्मीदों पर ग्रहण लग गया है जबकि इस सीट पर उनके पिता सत्यनारायण सिन्हा और पत्नी श्यामा सिंह सांसद रह चुकी हैं। 2009 में निखिल कुमार खुद भी जीतने में सफल रहे और 2024 में चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। कांग्रेस की यह परंपरागत सीट आरजेडी के हिस्से में चली जाने से निखिल कुमार का गेम बिगड़ गया है।

वाल्मिकी नगर सीट भी कांग्रेस नहीं ले सकी और आरजेडी के हिस्से में चली गई, जिसके चलते प्रवेश मिश्रा के चुनाव लड़ने पर ग्रहण लग गया। 2020 में हुए लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के प्रवेश मिश्रा महज 20 हज़ार वोट से हारे थे। लेकिन इस बार यह सीट आरजेडी ने अपने पास रख ली है। इससे पहले 2019 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। इसके बाद भी नहीं हासिल कर सकी।

कन्हैया कुमार को भी लगा झटका

बिहार के बेगूसराय की लोकसभा सीट भी कांग्रेस चाहती थी, जहां से कन्हैया कुमार को चुनाव लड़ाने की तैयारी थी। 2019 में कन्हैया कुमार सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़े थे, तब आरजेडी ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी उतारा था। इस बार कांग्रेस यह सीट चाहती थी, लेकिन आरजेडी ने लेफ्ट को ये सीट दे दी है। बेगूसराय सीट पर भूमिहारों की तादात अच्छी खासी है। कन्हैया कुमार भी भूमिहार बिरादरी से आते हैं। इसके अलावा बेगूसराय में कम्युनिस्ट वोटर भी अच्छी संख्या में हैं। ऐसे में आरजेडी का परंपरागत वोटर मुस्लिम-यादव का साथ मिलने से बेगूसराय का चुनावी समीकरण महागठबंधन के लिए और बेहतर हो सकता था, लेकिन लेफ्ट के खाते में जाने के बाद अब कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है।

प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर निराश

महाराजगंज लोकसभा सीट कांग्रेस के हिस्से जाने से आरजेडी के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर सिंह के चुनाव लड़ने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। रणधीर सिंह काफी समय से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। माना जा रहा है कि इस सीट पर कांग्रेस के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह अपने बेटे को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं, लेकिन आरजेडी अब रणधीर सिंह को कांग्रेस के सिंबल पर चुनावी मैदान में उतारने का विकल्प दे रही है। ऐसे में कांग्रेस अगर राजी नहीं होती है तो फिर रणधीर के चुनाव लड़ने की उम्मीदों को बड़ा झटका लगेगा।

कांग्रेस को मजबूत सीट क्यों नहीं मिली

बिहार में कांग्रेस को ऐसी सीटों से दूर रखा गया है जहां से वह अच्छा मुकाबला कर सकती थी। आरजेडी ने मधेपुरा लोकसभा सीट को भी अपने पास रखा है। कोसी-सीमांचल के इलाक़े की सुपौल सीट भी आरजेडी ने कांग्रेस को नहीं दी है। कन्हैया कुमार व पप्पू यादव अगर कांग्रेस से जीत दर्ज करने में सफल हो जाते हैं तो बिहार की सियासत में उसके उभरने से तेजस्वी यादव के सियासी भविष्य के लिए खतरा हो सकता था। इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि बिहार में आरजेडी जिस सियासी जमीन पर खड़ी है, वो कभी कांग्रेस की हुआ करती थी। कांग्रेस के उभरने से खतरा भी आरजेडी को सबसे ज्यादा है। माना जाता है कि इसीलिए कांग्रेस को कमजोर सीटें दी गई हैं।

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