सिवनीः दो दिवसीय राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला संपन्न

सिवनी, 09 मार्च। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा के अनुरूप शुक्रवार 08 मार्च को दो दिवसीय राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला ’’मध्यप्रदेश के भविष्य के वन्यजीव प्रबंध हेतु रणनीति’’ के द्वितीय दिवस पेंच टाईगर रिजर्व सिवनी के खवासा स्थित पर्यटन सुविधा केन्द्र के कांफ्रेंस हाल, रेंज आफिस कर्माझिरी हाल, रेंज आफिस खवासा बफर के हाल, एवं क्वारेन्टीन सेंटर एवं वन्यजीव अस्पताल के हाल में चार समूहों यथा जिनमें भू-परिदृश्य प्रबंध, वन्यजीव आवास प्रबंध , मानव-वन्यजीव द्वंद, समुदाय है उक्त चारों समूहों में चारों विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
पेंच टाईगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की विगत बैठक मे निर्देश दिया था कि मध्यप्रदेश में कुशल वन्यजीव प्रबंधन के कारण बाघ, तेंदुओं एवं अन्य वन्यप्राणियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है और आज मध्यप्रदेश देश का टाइगर स्टेट, लेपर्ड स्टेट, वल्चर स्टेट, वुल्फ स्टेट एवं घड़ियाल स्टेट है किन्तु यह भी सत्य है कि वन्यप्राणियों की बढ़ती संख्या प्रबंधकीय चुनोतियों को पैदा कर रही है। भविष्य में इनकी संख्या बढ़ने के कारण चुनौतियां भी बढ़ेंगी। अतः भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये देश भर के विशेष विशेषज्ञों को बुलाकर भविष्य की इन चुनौतियों से निपटने की रणनीति बनानी होगी। इस हेतु प्रदेश के वरिष्ठ वन अधिकारियों की देश के वन्यजीव विशेषज्ञों के साथ एक कार्यशाला का आयोजन होना चाहिए।
क्षेत्र संचालक ने बताया कि वन विभाग द्वारा भू-परिदृश्य प्रबंध समूह में संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार और वन्यजीव गलियारों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया गया ताकि पारिस्थितिकीय संबंध बनाए रखा जा सके। इसके अलावा, कार्य आयोजना में परिदृश्य प्रबंधन को शामिल करने और ड्रोन तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने पर चर्चा की गई।
वन्यजीव आवास प्रबंधन समूह में घासभूमि प्रबंधन, कम ज्ञात और संकटग्रस्त प्रजातियों जैसे सोनचिरैया (ग्रेट इंडियन बस्टार्ड) कराकल (फेलिक्स कराकल) और खरमौर (लेसर फ्लोरिकन) के संरक्षण और वन्यजीव प्रबंधन में मानव संसाधन चुनौतियों पर चर्चा की गई। आवास संरक्षण, पुनर्स्थापन केंद्रों की स्थापना पर विशेष जोर दिया गया।
मानव वन्यजीव-द्वंद समूह में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों के समाधान के लिए रणनीतियों पर चर्चा की गई। विशेष रूप से बाघ, हाथी और तेंदुए जैसी प्रजातियों के कारण होने वाली फसल क्षति, मवेशियों पर हमले और मानव हानि को कम करने के उपायों पर विचार किया गया। इस दौरान फील्ड इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और रेस्क्यू टीमों को आधुनिक उपकरणों से लैस करने को प्राथमिकता दी गई।
समुदाय समूह में स्थानीय समुदायों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इस सत्र में इको-पर्यटन को बढ़ावा देने, वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने और बफर गांवों में आधारभूत संरचनाओं के विकास पर चर्चा की गई ताकि दीर्घकालिक संरक्षण के प्रयासों से स्थानीय समुदायों को लाभ मिल सके।
इस कार्यशाला में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) एवं मुख्य वन्यजीव अभिरक्षक शुभरंजन सेन सहित मध्यप्रदेश शासन वन विभाग के अन्य प्रधान मुख्य वन संरक्षक, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र संचालक टाईगर रिजर्व, वनसंरक्षक, वनमंडलाधिकारी तथा राष्ट्रीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक, वन विभाग के वन्यजीव क्षेत्र के विशेषज्ञ सेवानिवृत अधिकारी एवं गैर शासकीय संगठनों (एन.जी.ओ.) के पदाधिकारी सहित 80 से अधिक प्रतिभागी इस कार्यशाला में शामिल हुए।
कार्यशाला के महत्वपूर्ण निष्कर्षों को संकलित कर राज्य सरकार को भविष्य की वन्यजीव संरक्षण रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
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