सनातन धर्म आदि अनादि और अनंत है इसको नष्ट करने वाले नष्ट हो जाते है पर सनातन कभी नष्ट नहीं होता-स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज
सिवनी। पालीटेक्निक मैदान सिवनी में चल रही भक्तिमय श्रीराम कथा के आठवें दिन परमपूज्य श्री चित्रकूट तुलसीपीठाधीश्वर पद्मविभूषण जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज जी ने कथा में श्रीराम और भरत के चित्रकूट में मिलन के सुंदर वर्णन का उल्लेख करते हुये भरत की श्रीराम भक्ति के अनुपम प्रसंग को आगे बढाते हुये कहा कि श्रीराम ने भ्राता भरत को धर्म नीति समझते हुये वापिस किया और फिर श्री राम सीता लक्ष्मण चित्रकूट से प्रस्थान करने के बाद भगवान श्रीराम वन में पाँच ऋषियों से भेंट करते है जिसमें सर्वप्रथम महर्षि अत्रि के आश्रम में आते हैं। वहां अत्रि ऋषि की पत्नि अनसुइया जी सीता को स्त्री धर्म की शिक्षा देकर सीता को दिव्य वस्त्र प्रदान करती है। सती अनसुइया ने सीता को उपदेश देते हुए चार प्रकार की पतिव्रता नारियों का वर्णन किया। जिसमें उत्तम, मध्यम, निकृष्ट और अधम शामिल है। वनों में विचरण करते समय राम ने विराध जैसे अनेक राक्षसों का संहार किया और भक्त सुतीक्ष्ण को दर्शन दिए। मुनि अगस्त के आश्रम में जाते हुए उन्हें रास्ते में पड़ा अस्थि समूह देखा तो ऋषियों ने राम को बताया कि यह राक्षसों द्वारा मारे गए ऋषि.मुनियों की अस्थियां हैं। तब राम ने प्रण किया निश्चर हीन करहुं महि। भुज उठाई पन कीन्ह।। बाद में वे भारद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुंच जाते हैं। ऋषियों से भेंट कर श्रीराम माता सीता से कहते है कि अब मुझे सनातन धर्म की रक्षा के लिये राक्षसों का सर्वनाश करना है जो आपके सहयोग के बिना संभव नहीं है और माता सीता को अग्रि प्रवेश करते है तथा माया रूपी सीता का निर्माण करते है ।
स्वामी राम भद्राचार्य जी ने कहा कि काम वासना का पराभव करना है तो माता सीता की शरण में जाना चाहिये उन्होंने बताया कि इंद्र देव का पुत्र जयंत नामक कौवा पक्षी का रूप धारण कर भगवान श्रीराम की थाह लेने के लिये उसने माता सीता के पैर में चोंच मारी थी जिससे माता सीता के पैर में खून आने लगा भगवान श्रीराम ने क्रोध कोदंड उसके पीछे छोड़ दिया जिससे बचने के लिये जयंत ने चारों लोक में भ्रमण किया और नारद जी से शिक्षा लेकर माता सीता की शरण में आया तब कहीं जाकर उसे जीवन दान मिला ।
स्वामी भद्राचार्य जी ने कथा में बताया कि भगवान राम का स्वरूप अगोचर है बुद्धि के से परे है अविगत है सर्वव्यापक है अकथ है जिसे कोई कह नहीं सकता और इतिहास पुराण कहते है कि भगवान श्रीराम का स्वरूप अपार है जिसका कोई अंत नहीं है जिसे कोई पार नहीं कर सकता । भगवान श्रीराम के स्वरूप का वर्णन हमारे वेदों और पुराणों में वर्णित है । भगवान श्रीराम का व्यापक आदि अनादि स्वरूप है और जिसके रक्षक इतने शक्तिशाली ईश्वर है सर्व सत्ता जो ऊपर है और वह सनातन धर्म के शिरोमणी है उस सनातन को कौन नष्ट कर सकता है । सनातन धर्म आदि अनादि और अनंत है इसको नष्ट करने वाले नष्ट हो जाते है पर सनातन कभी नष्ट नहीं होगा । स्वामी जी ने कहा कि सनातन को पांच तत्व संभाले हुये है यह पांच तत्व है अग्रि, जल, पृथ्वी, आकाश, एवं वायु । स्वामी जी ने कहा कि सनातन के पाँच प्राण है गीता गंगा गायत्री, गाय एवं गोविंद जिसके प्राण गोविंद स्वयं हो उस सनातन को कौन समाप्त कर सकता है ।
आज की कथा में महाराज श्री ने स्वादेशी के संबंध में भी भारत के गौरव की बात कही आपने बताया कि भारत ने 45 हजार करोड़ रूपये के स्वदेशी रक्षा अस्त्र क्रय किये । और उन्होंने स्वादेशी वस्तुओं को अपनाने का उपदेश दिया । आज की कथा में सरस्वती शिशु मंदिर में आचार्य एवं दीदियों के साथ बजरंग दल विश्व हिन्दु परिषद के पदाधिकारी एवं समाज के प्रतिष्ठित जन पादुका पूजन में शामिल हुये ।