पेड़ काटने से प्राकृतिक ऑक्सीजन के अभाव में लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे- डाॅ.के.के. चतुर्वेदी

रोज कटते है वृक्ष,बढ़ा रहे ऑक्सीजन की समस्या

सिवनी, 06 मई। अंतिम संस्कार में मानव शरीर को जलाने के लिये लकड़ी का उपयोग इस विश्वास के साथ किया जाता है कि मृत आत्मा को शांति मिल सके। लेकिन वास्तव में यह मानव जीवन के लिए एक बड़े खतरे के रूप में कोरोनासंकट में हमारे सामने आया है। जब ऑक्सीजन की त्राही-त्राही मची है,पेड़ काटने से प्राकृतिक ऑक्सीजन के अभाव में लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे है। वहीं कोरोना महामारी ने लोगों की सांसे छीन ली है। और बिना ऑक्सीजन लाशों के ढेर लगने लगे है। उक्ताशय की बात गुरूवार को डीपीसी महाविद्यालय के डायरेक्टर डॉ.के.के. चतुर्वेदी ने कोरोना वायरस और पर्यावरण विषय को लेकर वेबीनार में व्यक्त किये।

इसी तारतम्य में पर्यावरण से जुड़े संजय जैन ने कहा है कि देर से भले लोगों को पेड़ काटकर अंतिम संस्कार का खामियाजा समझ में आने लगा है। बड़े बुजुर्ग वर्षो से कहते आये है,पेड़ मत काटो,अन्यथा जीवन संकट में पड़ जायेगा। हमने उनकी कभी नही सुनी, और आज वह स्थिति आ गई है ऐसे समय में जब दुनिया में कोरोना महासंकट के दौरान ऑक्सीजन के लिए महामारी मची है,अंतिम संस्कार के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई क्या उचित है। क्या इस पर पुनरूविचार नही होना चाहिए।

जवाहर हाईस्कूल चक्कीखमरिया के प्राचार्य अखिलेश तिवारी ने कहा कि सामान्यतः दाहसंस्कार में तीन वृक्षों की लकडियाँ जल जाती है। विद्युत शवगृह से अंतिम संस्कार कराकर अनगिनत पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। लोगों में जब विद्युत शवदाह गृह को लेकर जागरूकता नही बढ़ेगी, तब तक पेड़ों का काटना जारी रहेगा। अगर पर्यावरण सुरक्षित रखना है और कोरोना महामारी से जीवन बचाना है तो विद्युत शवदाह गृह अपनाना होगा।

श्रीराम हॉयर सेकेंडरी हाईस्कूल बेलपेठ के प्राचार्य रामकुमार रघुवंशी ने कहा कि एक स्वस्थ पेड़ एक दिन में 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे 7 लोगों के प्राण बचाये जा सकते है। पेड़-पौधें ना रहें तो जीने के लिए सांस और धड़कन बंद हो जायेगी। अब भी समय है हम समझे और समझायें की पेड़-पौधें हमारे जीवन के लिए कितन अहम और प्राणदायक है।

एडव्होकेट अखिलेश यादव ने कहा कि पौधे विषाक्त उत्सर्जन को अपने में समाहित कर लेते है,पेड़-पौधों के नाम होने से मिलने वाले जीवनदायी लाभ कम हो गये। इसका प्रतिफल कोरोना के रूप में दिख रहा है। जब चिडिया चुग गई खेत अब रोना धोना छोड़कर अब भी मौका है,हमें अपनी गलती सुधारने का। अशासकीय शैक्षणिक संगठन के सचिव गजेश ठाकरे ने कहा कि पर्यावरण विदों के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए भारत में प्रतिवर्ष 50 से 60 मिलियन पेड़ों को काटा जाता है। अंतिम संस्कार के लिए काटकर जला दिया जाता है। यह लकड़ी जलते समय 10 लाख टन कार्बनडाई आक्साईड गैस का उत्सर्जन करती है। जो पर्यावरण के लिए अच्छा नही है। अंतिम संस्कार की पारंपरिक विधि के दो प्रमुख दोष वायु प्रदूषण और वनों की कटाई है। इसके अलावा खुले मैदान में अंतिम संस्कार से बड़ी मात्रा में राख उत्पन्न होती है। जो बाद में नदियों व तालाबों में प्रवाहित कर दी जाती है। जिससे जल प्रदूषण होता है। इस अंतिम संस्कार की वजह से खतरा उत्पन्न होता है।

हिन्दुस्थान संवाद

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