M.P.: कान्हा नेशनल पार्क में बढा बाघों का कुनबा, पांच शावकों के साथ डीजे-टी-27 बनी आकर्षक का केन्द्र
मंडला, 31 जनवरी (हि.स.)। मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में एक बार फिर बाघों का कुनबा बढ़ गया है। यहां डीजे-टी 27 बाघिन इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
वह अपने पांच शावकों के साथ घूमते हुए लगातार जंगल में सफारी करने वालों को दिखाई दे रही है। पर्यटक यहां पांच शावकों के साथ बाघिन को देखकर ने केवल रोमांचित हो रहे हैं, बल्कि उसकी तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं।
कान्हा नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर एसके सिंह ने मंगलवार को बताया कि बाघिन डीजे टी 27 अपने बच्चों के साथ देखी जा रही है। आए दिन पर्यटकों द्वारा पार्क के कान्हा, किसली, मुक्की एवं सरही जोन से बाघ-बाघिन और शावकों की तस्वीरें व वीडियो सामने आ रहे हैं। शावकों की ये तस्वीरें कान्हा में बाघों के बढ़ते कुनबे की ओर इशारा करती हैं।
गौरतलब है कि 2018 की गणना के अनुसार कान्हा में 118 बाघ थे। इनमें 39 नर, 42 मादा और 35 बच्चे थे। पार्क प्रबंधन की आंतरिक गणना (अनुमानित) के अनुसार वर्तमान में लगभग 100 व्यस्क बाघ और 25-30 शावक हैं। जल्द ही डीजे , नीलम, नैना सहित 5-6 बाघिन के शावक वयस्क होकर अपनी दहाड़ से कान्हा नेशनल पार्क के जंगल को गुंजायमान करेंगे। हालांकि, पिछले साल यानी 2022 में पार्क में चार बाघ की मौत भी हुई है। इसमें दो की प्राकृतिक मौत, एक बाघ रीढ़ की हड्डी में आई चोटों की वजह से व एक रेस्क्यू कर लाए शावक की मौत हुई है।
फील्ड डायरेक्टर एसके सिंह ने बताया कि बाघ की असमय मौत का सबसे प्रमुख कारण इनका आपसी संघर्ष होता है और यह खतरा जन्म लेते ही बाघ के सिर पर मंडराने लगता है। मादा से प्रणय की चाह में बाघ शावकों की जान ले लेते हैं। वहीं वयस्क बाघों के बीच भी क्षेत्र और मादा को लेकर जानलेवा और भीषण संघर्ष होता है। इसमें एक की मौत होना तो तय है ही साथ ही इसमें दूसरा बाघ भी गंभीर चोटिल होता है। जंगल में बाघों के धनत्व बढ़ने के साथ ही इनके क्षेत्रीयता को लेकर होने वाले आपसी संघर्ष का खतरा भी बढ़ता जाता है।
उन्होंने बताया कि यदि कोई मादा की मृत्यु हो जाए तो उसके अनाथ शावकों के लिए गोरेला में सेंटर है। जिसमें हम उन्हे रखते हैं। इस तरह से प्रशिक्षित करते हैं कि वे वन्य जीवन के लिए तैयार हो जाएं। उन्होंने बताया कि अभी तक 10 शावकों को यहां प्रशिक्षित कर जंगल में छोड़ जा चुका है। वर्तमान में भी सिवनी जिले से रेस्क्यू किया हुआ, एक शावक यहां है, उसकी प्रगति आशाजनक है। पार्क में सतत संपर्क के लिए एक वायरलैस नेटवर्क है। कोर जोन में 120 एवं बफर जोन में 50 पेट्रोलिंग कैम्पों के माध्यम से वनरक्षक एवं सुरक्षा श्रमिकों द्वारा सघन पैदल गश्ती की जाती है। इसके अतिरिक्त चलित उड़न दस्तों, टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स एवं भूतपूर्व सैनिकों की सेवाएं ली जा रही हैं।
नॉवेल ‘द जंगल बुक’ में कान्हा का जिक्र
गौरतलब है कि भारत के मध्य में स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान है। पार्क में टाइगर, भारतीय तेंदुए, भालू, बारहसिंगा और जंगली कुत्ते की आबादी अधिक है। रुडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध नॉवेल ‘द जंगल बुक’ में दर्शाए गए जंगल को कान्हा टाइगर रिजर्व पर आधारित माना गया है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश / डा. मयंक
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