भारतीय वैदिक ज्योतिष मे अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र से जुड़ी हुई कुछ पौराणिक कटहको के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा ने स्वयं को बहुत एकाकी पाया। अपने इसी एकाकीपन को दूर करने के लिए उन्होंने देवों की रचना की। ब्रह्मा द्वारा जिस सर्वप्रथम देव की रचना की गयी, वही अश्विनी है, जिसके दो हाथ हैं।एक अन्य कथा सूर्य को अश्विनी का पिता मानती है सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा था। सूर्य की किरणों का ताप न सह सकने के कारण वह भाग कर आर्कटिक प्रदेश में जाकर एक मादा- अश्व के रूप में विचरने लगी। सूर्य ने भी एक अश्व का रूप धर कर संज्ञा का पीछा किया संज्ञा उसे आर्कटिक प्रदेश में मिली। यहीं दोनों के संयोग से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ। यही अश्विनी कुमार बाद में देवताओं के वैद्य बने।यह कथा इस एक ज्योतिषीय धारणा को भी पुष्ट करती है कि सृष्टि के प्रारंभ में अपने अक्ष पर घूमती पृथ्वी पर सूर्य किरणें ध्रुवों तक पहुँचा करती। उस समय वसंत संपात अश्विनी नक्षत्र में था। उसी समय पृथ्वी पर जीवन का भी प्रारंभ हुआ।राशियों में अश्विनी नक्षत्र की स्थिति 0.00 अंशों से 13.20 अंशों तक मानी गयी है।अश्विनी के भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पर्यायवाची नाम हैं, तुरंग, दस् एवं हृय । यूनानी अथवा ग्रीक उसे कैस्टरपोलक्स’ कहते हैं, जबकि अरबी में ‘अश शरातन’। चीनी इस नक्षत्र को ‘लियू कहते हैं। अश्विनी नक्षत्र में तारों की संख्या में मतभेद है। यूनानी, अरबी उसमें दो तारों की स्थिति मानते हैं, जबकि भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीन तारों को मिलाकर इस नक्षत्र की रचना की गयी है।अश्विनी की आकृति अश्व अथवा घोड़े के समान कल्पित की गयी, इसीलिए इस नक्षत्र को यह नाम दिया गया। यो बाद में इनका संबंध देवगण के वैद्य द्वय अश्विनी कुमारों से भी जोड़ दिया गया। अश्विनी नक्षत्र से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, उसकी आगे चर्चा सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र का ज्योतिषीय परिचयःअश्विनी नक्षत्र के देवता हैं अश्विनी कुमार, जबकि स्वामी केतु माना गया है। (केवल पिंशोतरी दशा में) गण देव, योनिः अश्व एवं नाडी आदि है।नक्षत्र के चरणाक्षर हैं- चू, चे, चो, ला यह नक्षत्र प्रथम राशि मेष का प्रथम नक्षत्र है।(मेष राशि में अन्य नक्षत्र हैं- भरणी के चरण तथा कृतिका का एक चरण) यह गंडमूल नक्षत्र कहलाता है।
अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक
अश्विनी नक्षत्र को सम्पूर्ण मेष राशि का प्रतिनिधित्व करने वाला नक्षत्र माना गया है। मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। ‘जातक पारिजात’ में कहा गया है।अश्विन्यामति बुद्धिवित विनय प्रज्ञा यशस्वी सुखी।अर्थात् अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने का फल है अति बुद्धिमान, धनी, विनयान्वित, अति प्रज्ञा वाला यशस्वी और सुखी। अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का व्यक्तित्व सुंदर, माथा चौड़ा, नासिका कुछ बड़ी तथा नेत्र बड़े एवं चमकीलें होते हैं।यद्यपि ऐसे जातक प्रत्यक्ष में बेहद शांत और संयत दिखायी देते हैं तथापि अपने निर्णय से कभी वे टस से मस नहीं होते। इसका कारण यह है कि वे कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं करते। वे उसके हर अच्छे-बुरे पहलू पर विचार करने के बाद ही निर्णय करते हैं। इसीलिए एक बार निर्णय करने पर वे उससे पीछे नहीं हटते। अपने निर्णयों में वे किसी से प्रभावित भी नहीं होते। फलतः उन्हें हठीभी मान लिया जाता है। ऐसे जातकों के बारे में कहा गया है कि यमराज भी उन्हें अपने निर्णय से नहीं डिगा सकते। लेकिन वे व्यवहार कुशल भी होते हैं तथा अपना इच्छित कार्य इस खूबी से करते हैं कि न तो किसी को पता चलता है, न महसूस होता है। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक यारों के यार अर्थात् श्रेष्ठ मित्र सिद्ध होते हैं। उनकी मानसिकता समझने में समर्थ लोगों के लिए वे सर्वोत्तम मित्र ही सिद्ध होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक जिन्हें चाहते हैं, उनके लिए वे सर्वस्व होम देने के लिए भी तत्पर रहते हैं। यही नहीं, वे किसी को पीड़ित देखकर उसे सांत्वना बंधाने में भी आगे होते हैं।ऐसे जातकों के चरित्र की एक विशेषता यह होती है कि यद्यपि वे घोर से घोर संकट के समय भी अपार धैर्य का परिचय देते हैं तथापि यदि किसी कारणवश उन्हें क्रोध आ जाए तो फिर उन्हें संभालना मुश्किल होता है।इसी तरह एक ओर वे अतिशय बुद्धिमान होते हैं तो दूसरी ओर कभी-कभी ‘तिल’ का भी ‘ताड़’ बना देते हैं, अर्थात् छोटी-छोटी बातों को तूल देने लगते हैं। फलतः उनका मन भी अशांत हो उठता है। वे ईश्वर पर आस्था रखते हैं लेकिन धार्मिक पाखंड को रंचमात्र भी नहीं पसंद करते। परंपराप्रिय होते हुए भी उन्हें आधुनिकता से कोई बैर नहीं होता।वे स्वच्छताप्रिय भी होते हैं तथा अपने आसपास हर वस्तु को करीने से रखना उनकी आदत होती है।शिक्षा एवं आय: अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातकों को हरफन मौला कहा जा सकता है अर्थात् सभी बातों में उनकी कुछ न कुछ पैठ होती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पर्याप्त सफलता मिलती है। वे चिकित्सा, सुरक्षा एवं इंजीनियरिंग क्षेत्रों में जा सकते हैं। साहित्य एवं संगीत के प्रति उन्हें खासा गाव होता है। उनकी आय के साधन भी पर्याप्त होते हैं पर प्रदर्शन-प्रियता पर व्यय के कारण वे अभाव भी अनुभव करते हैं। कहा गया है कि अश्विनी नक्षत्र में जातकों को तीस वर्ष की अवस्था तक पर्याप्त संघर्ष करना पड़ता है। कभी-कभी उनके छोटे-छोटे काम भी रुक जाते हैं। ऐसे जातक अपने परिवार को बेहद प्यार करते हैं। लेकिन कहा गया है कि ऐसे जातकों को पिता से न पर्याप्त प्यार मिलता है, न कोई सहायता। हाँ, मातृपक्ष के लोग उसकी सहायता के लिए तत्पर होते हैं।उन्हें परिवार से बाहर के लोगों से भी पर्याप्त सहायता मिलती है। ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी होता है। आम तौर पर सताइस से तीस वर्ष के मध्य उनके विवाह का योग बनता है। इसी तरह पुत्रियों की अपेक्षा पुत्र अधिक होने का भी योग बताया गया है।
अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-प्रथम : मंगल,द्वितीय शुक्र,तृतीय बुध और चतुर्थ चंद्रमा.क्रमशः… आगे के लेख मे अश्विनी नक्षत्र की जातिकाओ के विषय मे विस्तार से वर्णन किया जाएगा।
श्री अवनीश सोनी
ज्योतिष एवम वास्तु शास्त्री
जिला-सिवनी(म.प्र.)
मो.7869955008