कुनबे से निकलकर कुनबे में जायें तो दुर्गति हो जाती है, लेकिन यदि हम गृहस्थ आश्रम से साधना करते हुये यदि संन्यास लें तो हमारी सद्गति होती है-शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानद सरस्वती
सिवनी 22 फरवरी। सुरूचि और सुनिति दो बहनें हैं, हमें सुनिति के आधार पर चलना चाहिये। गृहस्थ आश्रम साधना के लिये महत्वपूर्ण है। सिवनी जिले से निकलने वाली वैन्या का उल्लेख शास्त्रों में भी है, जिसे हम वैनगंगा कहते हैं, जो गंगा सी पवित्र है। गुरू रत्नेश्वर धाम तीनों ओर से इसी पवित्र सलिला वैनगंगा से घिरा हुआ है, इसलिये इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। उक्त बातों को श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन आज दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानद सरस्वती जी महाराज ने मोक्षदायिनी श्रीमद् भागवत कथा का वृत्तांत सुनाते हुये कही। आपने कहा कि सुरूचि और सुनिति दोनों बहनें थीं। हमें सुनिति के मार्ग पर चलना चाहिये, क्योंकि सुनिति का पुत्र धु्रव के कारण भगवान के दर्शन हुये थे। साधना के लिये गृहस्थ आश्रम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुनबे से निकलकर कुनबे में जायें तो दुर्गति हो जाती है, लेकिन यदि हम गृहस्थ आश्रम से साधना करते हुये यदि संन्यास लें तो हमारी सद्गति होती है। गृहस्थ आश्रम में यदि हम कोई गलती करते हैं तो उसे सुधारने का अवसर मिलता है, लेकिन सीधे संन्यास में ऐसा नहीं होता।
महाराजश्री ने एक शिक्षक का वृत्तांत सुनाते हुये कहा कि एक शिक्षक राजकुमार को भी पढ़ाता था और जब वह घर पहुंचता था तो रात को सोते समय कंबल ओढ़कर अपने पुत्र को शिक्षा देता था। जब परीक्षा हुई तो राजकुमार ने पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देता गया लेकिन शिक्षक के पुत्र ने उत्तर नहीं दिया। कहा पहले कम्बल लाओ उसे ओढ़ुंगा तब मैं उत्तर दे पाऊंगा। महाराजश्री ने कहा कि होम वर्क करने वाले छात्र शिक्षक से आंख मिलाकर जवाब देता है, लेकिन जिसने होमवर्क नहीं किया है वह आंख चुराता है। महाराजश्री ने शिक्षक और राजकुमार व पुत्र के बीच दी गई शिक्षा में जो कम्बल ओढ़ने का वर्णन किया है वहां आपने कम्बल को गृहस्थ मना है और यही गृहस्थ रूपी कम्बल ओढ़कर हम साधना करते हैं।
दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि माया तीन प्रकार की होती है। आपने भरत के हिरण के प्रति मोह का वर्णन सुनाते हुये कहा कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय जिसके प्रति मोह रखता है उसे अगले जन्म में वही मिलता है। भरत ने हिरण से मोह किया था और जब हिरण अपने परिवार में चला गया और भरत की मृत्यु हो गई तो मृत्यु के पहले तक उन्होंने हिरण को याद किया। इसलिये अगले जन्म में उन्हें हिरण का जन्म लेना पड़ा था।
महाराजश्री ने जिले के ग्राम मुंडारा से उद्गमित वैनगंगा का उल्लेख करते हुये बताया कि वैन्या का उल्लेख शास्त्रों में भी है। यही वैन्या सिवनी जिले से निकलने वाली वैनगंगा है, जिससे हमारा सिवनी जिला घिरा हुआ है। यह वैनगंगा भागीरथी गंगा जैसी पवित्र है। गुरूरत्नेश्वर धाम दिघोरी को वैनगंगा नदी तीनों तरफ से घेरे हुये है। यही कारण है कि इस पवित्र पावनी वैनगंगा के कारण गुरू रत्नेश्वर धाम का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
महाराजश्री ने कहा कि गाय के दो सींग जैसे ही हमारे पुण्य और पाप हैं, जो समय पर हमारे सामने आते हैं। आपने कहा कि अजामिल जैसा दुष्ट व्यक्ति भी भगवान के नाम के कारण नरक जाने से बच गया था। अजामिल ने संतों के कहने पर अपने पुत्र का नाम नारायण रखा था और जब उसकी मृत्यु निकट आई तो उसने अपने बालक के नाम नारायण को पुकारा। इस समय यमलोक और नारायण लोक के दूत आमने सामने हो गये और दुष्ट अजामिल को यम के दूत नहीं ले जा सके। अजामिल को मुक्ति मिली और नारायण के दूतों ने उसे स्वर्ग ले गया। कहने का मतलब यह है कि मृत्यु के समय यदि कोई भगवान का नाम ले लेता है तो उसके सारे पाप कट जाते हैं।
द्विपीठाधीश्वर ने कृष्ण की बुआ के लड़के शिशुपाल का वृत्तांत सुनाते हुये कहा कि शिशुपाल ने श्रीकृष्ण से बैर भक्ति की थी और बैर भक्ति के कारण भी उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ था। आपने प्रहलाद की कथा सुनाते हुये कहा कि बुरे व्यक्ति के घर जन्म लेने के बाद भी प्रहलाद ने हरि का आश्रय लिया और जैसे चुम्बक की तरफ लोहा अपने आप खिंच जाता है वैसे ही प्रहलाद की भक्ति में भगवान खिंचे चले आये थे। महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य की तीन अवस्थायें होती हैं, बाल्यावस्था, युवा अवस्था और वृद्धा अवस्था। बाल्यावस्था प्राण है, युवा अवस्था आँख और वृद्धा अवस्था मन। अत: मनुष्य को वाल्यावस्था से ही अपने मन को भगवान की ओर लगाना चाहिये। आपने बताया कि जिसकी दृष्टि स्थिर हो जाती है वह योगी हो जाता है।
महाराजश्री ने प्रहलाद और हिरण्या कश्यप की कथा सुनाते हुये कहा कि भगवान सब जगह विद्यमान है। जब यही बात प्रहलाद ने कही तो उनके पिता ने कहा कि कहाँ भगवान हैं और एक खम्बे को जैसे ही उन्होंने तोड़ा वहां से नरसिंह भगवान प्रकट हो गये और उन्होंने हरिण्याकश्यप का वध कर उसे मोक्ष प्रदान किया। कहने का मतलब है कि भगवान भक्तों के अधीन होते हैं और जब भी भक्त विपत्ती में आते हैं और उन्हें पुकारते है तो वे प्रकट हो जाते हैं।
हिन्दुस्थान संवाद
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