केजरीवाल मामलें में भारत ने सुनाया तो जर्मनी ने मारा यूटर्न, हस्तक्षेप करने से किया इनकार
नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के कथित शराब घोटाले में संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद कुछ देशों के इस मामले पर बयान सामने आए थे। जर्मनी के इस यूटर्न से पहले भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों को कानून की उचित प्रक्रिया पर साथी देशों पर टिप्पणी करने में बहुत सावधानी बरतनी होगी। भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के बयानों से बुरी मिसालें पैदा होंगी।जर्मनी ने भी अपनी राय दुनिया के सामने रखी थी। विदेश मंत्रालय ने जर्मन दूत को बुलाकर खूब फटकार लगाई। इसके बाद जर्मनी ने इसे भारत का आंतरिक मामला करार देते हुए यूटर्न ले लिया है। साथ ही इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
बीते शनिवार को विदेश मंत्रालय ने जर्मन दूत को साउथ ब्लॉक में बुलाया और भारत के आंतरिक मामलों पर जर्मन प्रवक्ता के बयान को लेकर फटकार लगाई। भारत ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने की जर्मनी की कोशिश करार दिया। इसके बाद जर्मनी ने अपना स्टैंड बदला और इस पूरे प्रकरण से खुद को अलग कर लिया।
जर्मन प्रवक्ता ने अपने ताजा बयान में कहा, “गोपनीय बातचीत की रिपोर्ट तो सार्वजनिक नहीं कर सकता, लेकिन इतना कह सकहता हूं कि दोनों पक्षों ने सहयोग को और गहरा करने में गहरी रुचि दिखाई है। भारतीय संविधान बुनियादी मानव अधिकारों और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। हम एक रणनीतिक भागीदार के रूप में भारत के साथ इन लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं।”
आपको बता दें कि 23 मार्च को भारत ने जर्मनी के मिशन के उप प्रमुख को तलब किया था और केजरीवाल की गिरफ्तारी पर उसके विदेश मंत्रालय की टिप्पणी पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। जर्मनी के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा था कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का संज्ञान लिया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने तब कहा था, “ हम ऐसी टिप्पणियों को हमारी न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने के तौर पर देखते हैं।”
अरविंद केजरीवाल को धन शोधन मामले में 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। वह 28 मार्च तक एजेंसी की हिरासत में हैं। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति बनाने और लागू करने में कथित भ्रष्टाचार और धनशोधन से संबंधित है। इस नीति को बाद में रद्द कर दिया गया था।
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