(अपडेट) प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने से पहले भारत की कोई रक्षा नीति नहीं थी : अमित शाह
विश्वविद्यालय को हिंसा और वैचारिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए
नई दिल्ली, 19 मई (हि.स.)। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भारत की रक्षा नीति को लेकर पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि जहां तक सुरक्षित भारत का सवाल है नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले भारत की कोई रक्षा नीति ही नहीं थी। हम विदेश नीति को ही रक्षा नीति मानते थे।
केंद्रीय मंत्री शाह गुरुवार को यहां ‘स्वराज से नव-भारत तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा ‘स्वराज’ से ‘नव-भारत’ तक विचारों का पुनरावलोकन विषय पर इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन शताब्दी समारोह के हिस्से के रूप में किया जा रहा है।
शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पिछले आठ सालों में न्यू इंडिया का रास्ता तय कर दिया है। जहां तक सुरक्षित भारत का सवाल है नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले भारत की कोई रक्षा नीति ही नहीं थी। हम विदेश नीति को ही रक्षा नीति मानते थे। इस देश पर सालों से हमारे पड़ोसी देशों द्वारा प्रछन्न रूप से हमले होते थे, आतंकवादी भेजे जाते थे। उरी और पुलवामा में इन 8 सालों में भी जब ये प्रयास हुए तो भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर कर मुंह तोड़ जवाब घर में घुस कर दिया तब समग्र विश्व के सामने भारत की रक्षा नीति क्या है, यह स्पष्ट हो गया। उन्होंने कहा कि हम विश्व भर के देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं, हम सबको साथ में लेकर चलना चाहते हैं, हम शांति चाहते हैं और शांति के पुजारी भी हैं, मगर जो हमारी सेना और सीमा के साथ छेड़खानी करेगा उसको उसी की भाषा में जवाब देने के लिए हम दृढ़ निश्चयी भी हैं। पहली बार देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामले में देश के एक नेता ने निर्णायक भाषा के साथ विश्व को अपना परिचय कराया है कि भारत की सीमाओं का कोई अपमान नहीं कर सकता और यह निर्णायक परिचय पूरे विश्व में भारत के परिचय में परिवर्तित हुआ है। सेना और सीमा से छेड़खानी करने वालों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि जहां पहले केवल अमेरिका और इजरायल को अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए जाना जाता था आज भारत तीसरा देश बन गया जो अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए तत्पर है।
उन्होंने विश्वविद्यालयों को विचारों के आदान-प्रदान का मंच बताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को हिंसा और वैचारिक लड़ाई का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघर्ष के स्थान पर विमर्श को स्थान मिलना चाहिए। गृह मंत्री ने कहा कि कुछ लोग इस देश को समस्याओं का देश कहते हैं, लेकिन लाखों समस्याओं का समाधान भी इस देश के विचार में ही है। शाह ने कहा कि आइडियोलॉजी के लिए लड़ने की जरूरत नहीं होती बल्कि विचार और विमर्श से ही आइडियोलॉजी आगे बढ़ती है और युगों-युगों तक चलती है। उन्होंने कहा कि नालंदा और तक्षशिला को तोड़ने वालों को कोई याद नहीं करता। उन्होंने अधिकारों की लड़ाई को लेकर युवाओं से आह्वान किया कि चाहे थोड़ा अधिकार मिले लेकिन अपने दायित्वों की चिंता करें। जब अपने दायित्वों की चिंता करेंगे तो किसी के अधिकारों की रक्षा स्वयं हो जाएगी। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे संघर्ष का रास्ता छोड़ कर दायित्वों का रास्ता अपनाएं।
उन्होंने समाज में परिवर्तन के लिए विश्वविद्यालयों के महत्व को बताते हुए कहा कि जब भी परिवर्तन होते हैं तो उनके वाहक विश्वविद्यालय होते हैं। युग परिवर्तन में विश्वविद्यालयों का विशेष महत्व रहा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश में 2014 के बाद जो नजरिए को बदलने की शुरुआत हुई है उसका वाहक भी दिल्ली विश्वविद्यालय बने। उन्होंने डीयू की स्थापना से लेकर अनेकों महानुभूतियों को याद किया जिनका जुड़ाव डीयू से रहा है। 1975 में देश के लोकतन्त्र को बचाने का जो आंदोलन हुआ उसमें भी दिल्ली विश्वविद्यालय का बहुत बड़ा योगदान रहा।
उन्होंने संगोष्ठी के थीम में स्वराज शब्द की व्याख्या को लेकर कहा कि आजादी के बाद शासन करने वालों ने इसकी परिभाषा को केवल शासन व्यवस्था तक सीमित कर दिया जबकि इस शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। उन्होंने कहा कि स्वराज की कल्पना में स्व शब्द का बहुत महत्व है। स्व की व्याख्या में ही स्वदेशी, सत्य, अहिंसा, स्वधर्म और राष्ट्रवाद आदि समाहित हैं। तत्कालीन शासकों ने सभी व्यवस्थाओं को सीमित करके केवल शासन तक ही समेट दिया है। उन्होंने कहा कि स्वराज की कल्पना में ही न्यू इंडिया का विचार समाहित है।
अमित शाह ने कहा कि अगर हम भारत को जियो-पॉलिटिकल देश के रूप में देखेंगे तो हम कभी भारत को समझ नहीं पाएंगे। भारत एक भू-सांस्कृतिक देश है और जब तक इस बात को हम नहीं समझेंगे हम भारत की कल्पना को समझ नहीं सकते। उन्होंने कहा कि विश्व में जो अच्छा हो रहा है उसे स्वीकारना हमारी विशेषता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हमारा जो पुराना था वह प्रासंगिक नहीं है। हमने हजारों वर्ष पहले विश्व बंधुत्व की बात कही है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 से 2022 तक आठ वर्षों की यात्रा में सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और संस्कृति को पुन:गौरवान्वित करने की दृष्टि से भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। पहले जो 80 करोड़ लोग खुद को देश की व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं मानते थे, अब अंतोदय से वो भारत की अर्थव्यवस्था का हिस्सा मानने लगे हैं। लाभार्थियों को डीबीटी के माध्यम से बिना बिचौलियों के सीधे खातों में पैसे पहुंच रहे हैं। कोरोना के दौरान 190 करोड़ टीके वैक्सीन लगा कर विश्व में मिसाल कायम की है।
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति आज देश में लागू हो गई है जो निश्चित रूप से देश की शिक्षा को उज्ज्वल भविष्य प्रदान करेगी। उन्होंने नई शिक्षा नीति भविष्य के भारत का उज्जवल दस्तावेज बताया। अमित शाह ने नई शिक्षा नीति प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह छात्रों के साथ साथ देश के विकास में सहायक होगी। शाह ने कहा कि एनईपी पहली ऐसी शिक्षा नीति है जिसका किसी ने विरोध नहीं किया और सभी ने स्वागत किया है।
उन्होंने कहा कि छात्रों को विश्व की सभी भाषाओं को जानने का अधिकार है, लेकिन अपनी मातृ भाषा को भी जानने का अधिकार है। यह काम नई शिक्षा नीति करेगी।
समारोह के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा नीति ‘नवभारत’ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए एक रोड मैप पर चर्चा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि विश्वविद्यालय को भविष्य में पेटेंट प्रबंधन, ग्रीन जीडीपी अकाउंटिंग, ई-कॉमर्स आदि पर अल्पकालिक पाठ्यक्रम शुरू करने का लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ने कोविड महामारी के दौरान स्वयं को लचीली अर्थव्यवस्था बनाया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा वर्तमान समय में किए गए अच्छे कार्यों को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने में विश्वविद्यालय की भूमिका होनी चाहिए।
संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह के दौरान अपने स्वागत भाषण में डीयू कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह का डीयू परिसर में आना विश्वविद्यालय के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्रीय शिक्षा एवं कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का भी स्वागत किया। कुलपति ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2047 तक भारत को 6 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने को साकार करने में विश्वविद्यालय की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि अगले 20 वर्षों में कम से कम 10 प्रतिशत की वृद्धि दर होगी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्याल्यों में ही इस तरह के विचार तैयार होते हैं और उन्हें लागू किया जाता है। विचारों की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने शताब्दी वर्ष में उन विद्यार्थियों को अपनी लंबित डिग्री पूरी करने का मौका दिया है जो किन्हीं कारणों से उस समय में अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाए थे। उन्होंने बताया कि इसके लिए परीक्षा में बैठने हेतु पंजीकरण एक पखवाड़े के लिए खुला था और इसमें 1560 विद्यार्थियों ने अपना पंजीकरण कराया, जिनमें से सबसे पुराना विद्यार्थी बी.कॉम का 1977-1980 बैच का एआरएसडी कॉलेज से है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के ‘नए भारत’ के सपने को साकार करने के लिए इस तरह के लीक से हटकर विचार आवश्यक हैं।
ये दस्तावेज हुए रिलीज
सेमिनार के उद्घाटन सत्र के दौरान संगोष्ठी की सार संक्षेप पुस्तिका के साथ ही डीयू के अपडेट एक्ट का भी विमोचन किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर आधारित स्नातक पाठ्यक्रम 2022 की रूप रेखा के गुजराती, उड़िया, बंगाली और उर्दू भाषा में अनुवादित संस्करण का विमोचन किया गया।
इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार/सुशील
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