मानव जीवन की अद्वितीय प्रतिमा थे बाबूरामसिंह चौधरी

🔹 अध्यात्म ,समाज सेवा और परोपकार के लिए सदैव याद किए जाएंगे
सिवनी, 13 जून। ईश्वर के बनाए इस संसार में मनुष्य जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मनुष्य जीवन ही एकमात्र अवसर होता है जब वह सदमार्ग व सच्चरित्र के पथ पर चलकर मानव सेवा ,उदारता और परोपकार के माध्यम से अपने जीवन और परलोक को सुधारता है। मानवता के कुछ इन्हीं उच्चतम आदर्शों को लक्ष्य बनाकर सिवनी जिले के घंसौर विकासखंड में सुदूर नर्मदा तट पर ग्राम झुरकी में मानव जीवन की अद्वितीय प्रतिमा थे श्री बाबूराम सिंह चौधरी।
जिन्होंने अपनी 97 वर्ष की आयु पूर्ण कर 15 मई 21 दिन शनिवार को लौकिक संसार से विदा हुये। आप अत्यंत प्रेमी ,सहज और सेवाभावी व्यक्ति थे। पूज्य बाबूरामसिंहजी मानवसेवा को सर्वोपरि मानकर जीवन पर्यंत संत स्वभाव से धर्म -आध्यात्मिक – सत्संग को सर्वोच्च प्राथमिकता देते रहे। नर्मदा तट पर सिद्ध पदमीघाट आश्रम के ब्रह्मचारी सन्त पूज्य श्रीजनार्दन प्रकाशजी का सानिध्य और जीवन भर संतों की सेवा और धर्मपूर्ण आचरण आपके जीवन का प्रमुख पक्ष रहा। संपन्नता और वैभव के बीच आपने महत्वाकांक्षा को आध्यात्मिक जीवन पर कभी हावी नहीं होने दिया। गांधी – खादी – सादगी से परिपूर्ण उच्च विचारों से जीवन निर्वाह किया। ब्रिटिशकालीन ऑक्सफोर्ड कोर्स की शिक्षा प्राप्त कर उन अवसरों को ठुकराया जो भौतिकता से ग्रस्त थे।

हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत और उर्दू भाषा में समान दक्षता प्राप्त बाबूजी के जीवन काल के इतने संस्मरण हैं कि उन्हें एक किताब के रूप में लिखना पड़ेगा। फिर भी एक उदाहरण से ही इनकी विचारधारा को जाना जा सकता है कि अपने जीवन के अध्ययनकाल में जब वह मंडला जिले के शहीद उदय चंद जैन के सहपाठी थे ,तब गांधी जी के नेतृत्व में सन 1942 का भारत छोड़ो स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन चल रहा था। मंडला में आज भी शहीद उदयचंद जैन की प्रतिमा और शहर में उदय चौक विख्यात है। भारत की स्वतंत्रता के बाद जब आप से भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन के लिए आवेदन देने को कहा गया तब आपके द्वारा यह कहा गया कि स्वयं के द्वारा आवेदन करना उपयुक्त नहीं हैं और यदि शासन को लगता है कि मैंने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आंदोलन में भाग लिया तो वह पात्र समझे और आपने आवेदन नहीं किया और इसप्रकार पेंशन नहीं ली। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब आपने समाज व राष्ट्र हित में व्यक्तिगत स्वार्थ को ठुकरा दिया। आजादी के बाद से मृत्यु पर्यंत तक उच्च राजनीतिक संपर्कों के बावजूद व्यक्तिगत स्वार्थ से परे हमेशा समाज और देश सेवा को प्राथमिकता देते रहे। वाकपटुता और आकर्षक वार्तालाप के धनी आपने समाज के अभावग्रस्त और वंचित व आदिवासी समाज का उत्थान और सहयोग करते हुए अनेक लोगों के जीवनों को संवारा और मार्गदर्शित किया।
आपने अनेक शैक्षिक संस्थाओं में विद्यार्थियों के प्रोत्साहन के लिए पुरस्कार प्रारंभ कराए जो आज भी अनवरत जारी हैं। समाज और देश पर विपत्ति के समय स्वर्ण , धनराशि व अनाज का हमेशा दान और सहयोग करते हुए ,निराकार ईश्वर की उपासना और पंथ व जाति से परे आप सामाजिक कुप्रथाओं के प्रखर आलोचक रहे। मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में अपने वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से समाधान की कला में निपुण थे। आपसे मिलने आने वाले राजनैतिक ,सामाजिक ,धार्मिक और लगभग हर क्षेत्र के लोगों के ऑटोग्राफ और उनके संस्मरण उनके पास एक ‘ विलेजर विजिटर बुक ‘ पर अंकित हैं। आपने अपने अंतिम समय में सामाजिक कुप्रथा जैसे मृत्युभोज पर सख्त प्रतिबंध लगाते हुए निर्देशित किया है और समाज और परिवार को सदैव भाईचारा ,सद्भाव और सहयोग का संदेश दिया है जो परिवार और मानव समाज के लिए सदैव प्रेरणा देते रहेंगे।
हिन्दुस्थान संवाद
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