सोशल मीडिया से जुटाई गई जानकारी जनहित याचिका में दलीलों का हिस्सा नहीं हो सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट – aajkhabar.in
नई दिल्ली । बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने साफ कहा कि सोशल मीडिया से जुटाई गई जानकारी PIL में दलीलों का हिस्सा नहीं हो सकती. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर जनहित याचिका (PIL) दायर करने के लिए एक वकील को फटकार लगाई. चीफ जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की डिवीजन बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
ये याचिका वकील अजीतसिंह घोरपड़े ने दाखिल की थी. याचिका में महाराष्ट्र सरकार को राज्य में झरनों और जल निकायों पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए उपाय करने के निर्देश देने की मांग की गई थी. हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका पर विचार करने से मना कर दिया। याचिका में कहा गया- हर साल असुरक्षित झरनों और जलाशयों का दौरा करते समय लगभग 1,500 से 2,000 लोग अपनी जान गंवा देते हैं. इसलिए सुरक्षा के लिहाज से निर्देश दिया जाए।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा, ये जानकारी आपको कहां से मिली?
जवाब देते हुए याचिकाकर्ता के वकील मणिंद्र पांडे ने कहा- उन्होंने समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पोस्ट से ये जानकारी हासिल की थी।
हाईकोर्ट ने याचिका को अस्पष्ट पाया. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया से जुटाई गई जानकारी किसी जनहित याचिका में दलीलों का हिस्सा नहीं हो सकती. आप जनहित याचिका दायर करते समय इतने गैर-जिम्मेदार नहीं हो सकते. आप कोर्ट का समय बर्बाद कर रहे हैं. कोई पिकनिक मनाने जाता है और दुर्घटनावश डूब जाता है, इसलिए ये जनहित याचिका है? ये कैसे अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है?
वकील ने कहा- राज्य सरकार को ऐसे जल निकायों और झरनों पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया जाना चाहिए. हाल ही में डूबने की एक घटना के दौरान कोई बचाव दल नहीं था, जिसके कारण पीड़ित का शव घटना के दो दिन बाद ही बरामद किया गया था।
हाईकोर्ट ने पूछा,
“क्या याचिकाकर्ता ने ऐसे किसी झरने या जलस्रोत का दौरा किया है या पता लगाया है कि इनमें से कौन सा झरना या जलस्रोत खतरनाक या असुरक्षित है. वैसे भी अधिकांश दुर्घटनाएं ऐसी जगहों पर जाने वाले व्यक्तियों के लापरवाह कृत्यों के कारण होती हैं.”
हाईकोर्ट ने ये भी पूछा,
“आप महाराष्ट्र सरकार से क्या उम्मीद करते हैं? क्या प्रत्येक झरने और जल निकाय पर पुलिस तैनात की जा सकती है?”
इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली