दिव्य पुरूष जन्म नहीं लेते, बल्कि अवतरित होते है- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

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सिवनी, 23 फरवरी । गंगा जैसी पवित्र पुण्य सलिला वैन्या जिसे हम वैनगंगा कहते हैं, उसके तट के समीप गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरी में आज सनातनियों के आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। महाराजश्री ने कहा कि दिव्य पुरूष जन्म नहीं लेते, बल्कि अवतरित होते हैं। आज उनके अवतार पर उपस्थित साधु-संतों और श्रद्धालुओं में भारी उत्साह था। बधाईयों के बीच सनातनियों ने उत्साह में नृत्य भी किया।
दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने आज मोक्षदायिनी श्रीमद् भागवत कथा के पाँचवे दिन कृष्ण जन्म का वृत्तांत बताया। आपने कहा कि पिछले जन्म में शेषावतार लक्ष्मण के रूप में जन्मे थे, जो हमारे आराध्य श्रीराम के छोटे भाई बने। कृष्ण जन्म में शेषावतार पहले अवतरित हुये और वे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ कहलाये। महाराजश्री ने आज अपना प्रवचन प्रारंभ करते हुये उपस्थितजनों को बताया कि समस्त दुखों की निवृत्ति में ही परमानंद की प्राप्ति होती है। दुखों से मुक्ति हो जाये तो जीवन धन्य हो जाता है। दुख का मूल शरीर है। आपने कहा कि जवानी आकर रहती नहीं है और बुढ़ापा आकर जाता नहीं है। आपने एक दम्पत्ति की कहानी सुनाते हुये कहा कि जब उनके घर में मेहमान आया और उसने जाने का नाम नहीं लिया तो उन्होंने झूठमूठ का झगड़ा रचकर पत्नी मायके जाने का कहकर चले गई और पति होटल में जाने का कहकर निकल गया। इन दोनों के जाते ही मेहमान भी चले गये। कुछ समय बाद जब यह दम्पत्ति लौटकर आई और पत्नी ने पति से कहा कि वह झूठमूठ का यहां से गयी थी तो पति बोला कि मैंने भी इसी झूठ का सहारा लिया। ऐसा कहकर पति-पत्नी खुश हो रहे थे, उसी समय मेहमान भी वापिस आ गये और उन्होंने कहा कि हम भी झूठमूठ में गये थे। महाराजश्री ने कहा कि यही मेहमान हमारा बुढ़ापा है जो चाहकर भी नहीं जाता है। बुढ़ापे में मौत तो आती नहीं है लेकिन रोग आ जाता है। महाराजश्री ने कहा कि आज का खान-पान ऐसा है कि मनुष्य को नये-नये प्रकार के रोग हो रहे हैं। अभी हाल में कोरोना जैसा रोग दुख का कारण बना हुआ है।


महाराजश्री ने कहा कि जन्म और कर्म में छुटकारा का उपाय गीता में बताया गया है। दुख का सबसे बड़ा कारण भूख है। इसी भूख के कारण किसान गिरते पानी में कीचड़ से सने पैर में फसल ऊगाता है। मजदूर रोजगार के लिये भटकता है। कर्मचारी आॅफिस जाता है। वैश्या भी कमाने के लिये लोगों को आकर्षित करती है और संन्यासी वन से गाँव में भिक्षा मांगता है। आपने कहा कि काम, क्रोध और मोह के अधीन रहने वाला व्यक्ति कभी किसी की नहीं सुनता है। ऐसा ही कंस ने किया था। अपनी बहन और बेहनाई की याचना को न सुनते हुये भविष्यवाणी के कारण उन्हें कैद खाने में डाल दिया था और यही उसकी मृत्यु का कारण बना। महाराजश्री ने कहा कि दीक्षा चार प्रकार की होती है- मंत्र दीक्षा, स्पर्श दीक्षा, चक्षु दीक्षा और मानसी दीक्षा। जो मनुष्य गुरू की शरण में जाता है उसका उद्धार हो जाता है। आपने कृष्ण जन्म का उल्लेख करते हुये कहा कि कृष्ण पक्ष की रोहणी नक्षत्र भादो माह की अष्टमी में ऐसे दिव्य पुरूष के रूप में आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। जिस समय उनका जन्म हुआ तो अंधेरा भी उजाले में बदल गया था और कृष्ण का अवतार हुआ, जिन्होंने बाल लीलायें करते हुये समाज को एक दिशा दी थी।
महाराजश्री के आगमन के पूर्व रविशंकर शास्त्री ने कहा कि जब हम धर्म की जय कहते हैं तब हम सनातन धर्म की जय बोलते हैं और इसी धर्म के संस्थापन के लिये भगवान अवतार लेते हैं। आपने राम शब्द की व्याख्या करते हुये कहा कि इस शब्द में अग्नि, सूर्य और चंद्रमा का तत्व मिला हुआ है, इसलिये राम शब्द का जप करना चाहिये। ज्योतिष पीठ के प्रभारी दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने गुरू की महत्ता बताई और कहा कि पूरी भागवत ही गुरू की महत्ता पर है, यह गुरूओं का ग्रंथ है और इसमें पग-पग पर गुरूओं की चर्चा है। इसी अवसर पर मंच पर आये द्वारका शारदा पीठ के प्रभारी दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण करने से धर्म की प्राप्ति होती है। पाप नष्ट होता है। मोह नष्ट होता है। ज्ञानामृत की प्राप्ति होती है, अंतरूकरण पवित्र होता है। अंतरूकरण की शुद्धि से भगवान के दर्शन होते हैं। मंच में निरंजन पीठ के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी प्रज्ञानानंद गिरी और गीता मनीषी ब्रम्हचारी निर्विकल्प स्वरूप भी उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान संवाद

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