M.P.: मातृशक्तियों ने पेडों पर रक्षा सूत्र बांध कर बक्स्वाहा जंगल कटाई का किया विरोध
सिवनी, 12 अगस्त। जिले के मातृशक्ति संगठन की मातृशक्तियां बक्स्वाहा जंगल कटाई के विरोध में गत दिवस जिला छतरपुर के बक्सवाहा में जंगल पहुंचा जहां उन्होनें कई ग्रामों का भ्रमण कर जंगलों में रह रहे विशेष आदिवासीयों से उनके विचार जान कर पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधकर कहा कि अगर जंगल की कटाई नहीं रोकी गई तो ये आंदोलन और तेज होगा क्योंकि इसमें अब पूरा देश एकजुट है और आश्वाशन दिया कि हम प्रकृति को बचाएंगे, बक्सवाहा नहीं कटने देंगे। हमे हीरे नहीं हरियाली चाहिए है।
मानव,पशु पक्षी,जीव जन्तु को जीवन की आवश्यकता है हीरो की नहीं। यह बात गुरूवार को मातृशक्ति संगठन की अध्यक्ष सीमा चौहान ने हिस से कही।
उन्होनें बताया कि वन से ही जीवन है छतरपुर जिला के बक्सवाहा जंगल में पन्ना के 15 प्रतिशत हीरे मिले है, जिसे प्रोजेक्ट द्वारा जंगलों की कटाई करके निकाला जाने वाला है। बक्सवाहा जंगल बचाओ अभियान में मातृशक्ति यूथ विंग समर्पण युवा संगठन के साथ- साथ 14 राज्यो से आए प्रकृति-प्रेमियों ने भी अपनी पूर्ण सहभागिता निभाई है जो जंगलों की कटाई से बचाने के लिए प्रयासरत है। इसमें प्रमुख रूप से पर्यावरण विद, डॉ धर्मेंद्र कुमार पटना बिहार से अपनी टीम के साथ शामिल हुए।
इस अभियान के तहत 8 अगस्त को छतरपुर ज़िले के गांधी भवन में सभी प्रकृति प्रेमी एकत्रित हो जंगलो के बचाव के लिए एक दूसरे के विचार साझा कर जिले में प्रकृति को बचाने के लिए एक संदेश रैली निकाली जिसका समापन छतरपुर बस स्टेशन में एक-मानव-श्रंखला बनाते हुए किया गया।
जिसमें आमजनों को ये संदेश दिया गया कि हमें बक्सवाहा जंगल को बचाने हेतु लड़ाई लड़नी होगी। इसी क्रम में संगठन 9 अगस्त को छतरपुर ज़िले के भीमकुंड गया जहां अन्य प्रकृति प्रेमियों से मिल कर जंगल बचाओ अभियान को आगे बढ़ाते हुए विचााभिव्यक्ति कर जंगल की ओर बढ़ा जहां संगठन को अनेक कठिनाईया का सामना करना पडा।
सीमा चौहान ने बताया कि इस दौरान उन्होनें पाया कि यहां पाई जाने वाली आदिवासी जनजाति जिनकी संख्या 8000 से भी अधिक है यह एक विशेष आदिवासी जनजाति है जो पूरे भारत वर्ष में अन्य कहीं नहीं पाई जाती है,
वह गोह जनजाति के आदिवासी जंगलों में रहते है जिनका समस्त जीवन जंगल पर निर्भर करता है
उन्हें चमकता हुआ पत्थर नहीं वन सम्पदा जंगल और वन्य जीवों का बचाव चाहिए। किसी समय भारत में खैर के पेड़ों से कत्था बनाकर अपनी जीविका चलाने वाली आदिवासियों की बहुतायत जन जाति हुआ करती थी। लेकिन उस समय की सरकार ने खैर के वृक्षों को सहेजने के बजाय उन्हें कटवा दिया जिससे इन वृक्षों से अपना जीवन यापन कर रहे आदिवासियों को छिन्न- भिन्न होना पड़ा।
अलग – अलग होने की वजह से जाती नष्ट होने लगी उन्हें दूसरा काम करना नहीं आता था। अब देश मे अन्य वृक्षों से कत्था बनाया जाने लगा जो गुणबत्ता विहीन है।
संगठन द्वारा लोगो को बताया गया कि विकास विनाश और विन्यास हमारे अंतःकरण में हैं..आप किसे चुनेंगे…, हीरे नहीं हरियाली चाहिए..हर घर की खुशहाली चाहिए..प्रकृति ही जीवन की सबसे पहली इकाई है।
बताया गया कि बक्सवाहा वन क्षेत्रों में आदिवासियों की एक विशेष जाति गोहा के लोग निवास करते है जो भारत में वहीं पाई जाती है जिसके उत्थान की जगह वहां के वनों को काटने का फरमान गोहा जन जाति के प्रति बहुत बड़ा अन्याय है।
हिन्दुस्थान संवाद