M.P: मंत्री एवं जनप्रतिनिधियों के अमर्यादित वक्तव्यों से आहत म.प्र.रेंजर एसोसिएशन ने राज्यपाल के नाम कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन ,की कार्यवाही की मांग
सिवनी, 06 दिसंबर। प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमणकारियों द्वारा किये जा रहे अवैध अतिक्रमण एवं वन कर्मचारियों / अधिकारियों पर हो रहे प्राणघातक जानलेवा हमलों से सुरक्षा प्रदान करने एवं आये दिन जन प्रतिनिधियों एवं मंत्रीद्वय द्वारा वन विभाग के विरुद्ध दिये जाने वाली धमकी एवं अमर्यादित वक्तव्यों के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों अनुसार उचित कार्यवाही किये जाने की मांग को लेकर मंगलवार को सिवनी सहित प्रदेश के सभी जिलों में राज्यपाल के नाम जिला कलेक्टर को स्टेट फॉरेस्ट रेन्ज ऑफीसर (राजपत्रित) एसोसिएशन म.प्र. ने ज्ञापन सौंपा है। इस आशय की जानकारी एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित सोनी ने मंगलवार की शाम को दी है।
स्टेट फॉरेस्ट रेन्ज ऑफीसर (राजपत्रित) एसोसिएशन म.प्र.के अध्यक्ष अमित सोनी ने बताया कि विगत दिनों मध्य प्रदेश पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के द्वारा अतिक्रमणकारियों को प्रोत्साहन देते हुए वन भूमि उनको प्रदाय करने और वन विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों को जनता को परेशान ना करने की नसीहत देते हुए संपूर्ण वन विभाग की ऐसी की तैसी करने जैसे शब्दों से अमर्यादित और असंसदीय असंवैधानिक भाषा का उपयोग करके वन विभाग की छबि धूमिल करने का प्रयत्न किया गया जिसके विरोध में वनरक्षक से लेकर भोपाल तक के समस्त अधिकारियों ने आलोचना करते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री के विरुद्ध उचित कार्यवाही की मांग की है। उसी विरोध के तारतम्य में मंगलवार को स्टेट फॉरेस्ट रेंज ऑफीसर्स (राजपत्रित) एसोेसिएशन म.प्र. के आह्वान पर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर राज्यपाल के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर उचित कार्यवाही की मांग की गई है।
सौंपे गये ज्ञापन में कहा गया है कि प्रदेश में बढ़ रहे अतिक्रमण न केवल वनभूमि बल्कि राजस्व क्षेत्र से भी हैं जबकि वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त रखने के प्रयास में आयेदिन वन माफियाओं द्वारा वन अमले पर प्राणघातक जानलेवा हमले किये जा रहे है जिसमें नेपानगर, बुरहानपुर, गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, दमोह, भोपाल, रायसेन एवं खण्डवा जिलों में व्यापक स्तर पर अतिक्रमण के मामले सामने आये है एवं अतिक्रमण के दौरान प्राणघातक हमलों में वनरक्षक से लेकर वनक्षेत्रपाल एवं वरिष्ठ वन अधिकारियों तक अनेक वनकर्मचारी अकाल मृत्यु को प्राप्त होकर शहीद तक हो चुके हैं। परन्तु इसके बाद भी शासन के उदासीन एवं सुस्त रवैये से वन माफियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं एवं उनका संरक्षण खुले मंच से जन प्रतिनिधियों द्वारा किया जा रहा है।
इन परिस्थितियों को दरकिनार करते हुए विगत के वर्षों में 19 सितंम्बर 20 को म.प्र. में मनाये जा रहे वन अधिकार उत्सव दिवस के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा खुले मंच से बक्तव्य दिया गया था कि नाकेदार और रेन्जर वनों में रहने वाले आदिवासी / ग्रामीणों पर अन्याय करते हैं एवं जबरदस्ती ग्रामीणों के बकरे-बकरी, मुर्गा-मुर्गी उठा ले जाकर प्रताड़ित करते हैं एवं रेन्जर डेन्जर होता है। जैसे बक्तव्य से संबोधित किया गया। जिसका अक्षरशः पालन करते हुए म.प्र. के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया द्वारा पूरे वन विभाग की ऐसी की ऐसी कर दूंगा। जैसे अप्रत्याशित, अमर्यादित एवं अशोभनीय शब्दों (गाली) का उपयोग सम्पूर्ण वन विभाग एवं उसके कर्मचारियों/अधिकारियों के लिए किया गया है। जिससे वन एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा में तैनात सम्पूर्ण वन अमले के मनोवल पर विपरीत प्रभाव पड़ा है एवं खुद को ठगा सा असहज एवं असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री जी यह वक्तव्य अत्यंत दुखद एवं निंदनीय होने के साथ-साथ अमर्यादित एवं अशोभनीय है जिसका स्टेट फॉरेस्ट रेन्ज ऑफीसर्स (राजपत्रित) एसोसिएशन म.प्र. घोर निंदा करता है एवं संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार उचित कार्यवाही की मांग करता है। ताकि वन विभाग की गरिमा एवं स्वाभिमान अक्षुण बना रहे।
ज्ञापन में आगे कहा गया कि पूर्व से वर्तमान तक चलाये जा रहे वन अधिकार कार्यक्रम के तहत की जा रही कार्यवाही के अंतर्गत वन विभाग के मैदानी अमले के प्रति आमजन के मन में रोश पैदा हुआ है।
हुआ है। चूँकि वन अधिकार अधिनियम 2006 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि किसी भी वन अधिकार आवेदक / हितग्राही के पास वन भूमि के संबंध में कम से कम दो प्रकार के साक्ष्य आवश्यक हैं जबकि उक्त कार्यवाही में दो बुजुर्गों के कथन के आधार पर अर्थात एक ही साक्ष्य के आधार पर वन अधिकार पत्र दिये जा रहे हैं जिससे वन अधिकार प्रक्रिया अर्थात वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानों की अनदेखी की जा रही है। जिससे राजनैतिक आकांक्षाओं की पूर्ति होना तो संभव है परन्तु वन अधिकार / पट्टे के नाम पर भ्रमित वनवासी / ग्रामीण अन्यायिक एवं अनैतिक कृत्य करने के लिए वन अमले पर निरंतर प्राणघातक हमले करते जा रहे हैं जबकि वन अधिकार अधिनियम 2006 के नियम 12 A(II) में स्पष्ट प्रावधान है कि उपखण्ड स्तरीय एवं जिला स्तरीय समिति दावे के निराकरण करने में सेटेलाईट एमेजरी का उपयोग करेगी। उक्त अधिनियम के नियम 13 में भी स्पष्ट प्रावधान है कि दावों के निराकरण के लिए सेटेलाईट एमेजरी का उपयोग साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।
आगे कहा गया कि तथ्यात्मक स्पष्टीकरण यह है कि उच्च न्यायालय गुजरात ने याचिका क्रमांक 100/2011- Action Research in Community Health & Devlopment (ARCH) V/S State of Gujrat Througe chief secretary / Chairperson, State में में दिनांक 03 मई 13 को निर्णय पारित करते हुए निर्देशित किया गया कि वन अधिकार से संबंधित दावों के निराकरण में सेटेलाईट एमेजरी का उपयोग किया जा सकता है। फिर भी मध्यप्रदेश शासन में अधिनियम एवं अन्य राज्यों के निर्णय के विरुद्ध सेटेलाईट एमेजरी का उपयोग वन अधिकार दावों के निराकरण में न करने हेतु व्यर्थ दवाब विभिन्न स्तर से वन अमले पर डाला जा रहा है जिसके कारण वन अधिकार हेतु वन क्षेत्र में नित्य नये अतिक्रमण बन रहे। हैं जिससे वन माफियाओं के हौसले सातवे आसमान पर होकर वन अमले तथा वनरक्षक से लेकर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक स्तर के समस्त वन कर्मचारी / अधिकारी पर प्राणघातक हमले किये जा रहे हैं। जिसका ताजा उदाहरण लटेरी एवं नावरा में हुई घटनाएं हैं जिनकी स्पष्ट रूप से खबरें प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रसारित हो रही हैं जिससे माननीय आप भी अनभिज्ञ नहीं हैं। बल्कि आज दिनांक तक न तो प्रशासन स्तर पर और न ही शासन स्तर पर वन माफियाओं एवं हमलावरों के विरुद्ध कोई भी कड़ी कार्यवाही नहीं की गई है। इस प्रकार राजनैतिक स्वार्थो हेतु गलत बयानबाजी एवं अधिनियमों के प्रति दुःप्रचार के कारण वन अधिकार पाने की लालसा में वनक्षेत्र में रहने वाले भोले-भाले वननिवासी वन विभाग के मैदानी अमले को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानने लगे हैं।
वन विभाग का मैदानी अमला सदियों से दूरस्थ वनक्षेत्र में रहे वन निवासियों के साथ रहकर उनके हितों का संरक्षण करते हुए प्राकृतिक संपदा से भरे खुली तिजौरी (वन, वन्यप्राणी, नदी, नाले, पहाड़, गौड़ खनिज, लघु उत्पाद इत्यादि) की सुरक्षा संयुक्त रूप से करते रहे हैं। संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से समस्त ग्रामीणों का साथ वन विभाग के मैदानी अमले को प्रोत्साहन स्वरूप मिलता रहा है साथ वन विभाग का मैदानी अमला दिन-रात, वर्षा- ठण्डी एवं गर्मी की परवाह न करते हुए वनक्षेत्र में न्यूनतम सुविधा, कम वेतन भत्ते के साथ विषम पारिवारिक परिस्थितियों में गुजर बसर करके अपना कर्तव्य निभा रहा है एवं उन्हीं ग्रामीणों के बीच अभी तक अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था जबकि जन प्रतिनिधियों एवं मंत्रीद्वयों के उक्त वक्तव्यों यथा मुर्गा-मुर्गी, बकरा-बकरी उठाने वाले एवं वन विभाग की ऐसी-तेसी करने वाले ब्यानों से आज चारों ओर वन अमले पर हो रहे प्राणघातक हमलों ने अपना उग्र रूप धारण कर लिया है जिससे वन अमले में भय एवं असुरक्षा की स्थिति निर्मित हो गई है।
आगे कहा गया कि वन विभाग के मैदानी अमले की मेहनत एवं त्याग का ही नतीजा है। कि आज मध्यप्रदेश को वनावरण बढ़ोत्तरी एवं टाईगर स्टेट के साथ-साथ लेपर्ड स्टेट एवं चीता स्टेट का दर्जा प्राप्त है जिसने देश में ही नहीं वरन पूरे विश्व में पहचान दिलवाई है। साथ ही वन अमले के अथक परिश्रम से महोदय को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि पार्क प्रबंधन में म.प्र. अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है जिसके चलते अपने पार्क प्रबंधन के कारण म.प्र. का कान्हा टाईगर रिजर्व देश के सर्वश्रेष्ठ पार्क प्रबंधन में विश्व विख्यात है। जो इस बात की ओर इशारा करता है कि वनरक्षक से लेकर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक तक का वन अमला अपने-अपने कर्तव्यों का ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वहन कर रहा है।
इस दौरान सिवनी वन वृत अंतर्गत वन परिक्षेत्र अधिकारी , अमित सोनी, धनश्यामदास चतुर्वेदी, दानसी उइके , श्रीमति शैलजा ठाकुर, मंयक उपाध्याय, उपवनक्षेत्रपाल एसपी उपाध्याय सहित एसोशियन के संदस्य एवं वनकर्मी उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान संवाद