म.प्र.: 02 दिवसीय राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला का शुभारंभ

 

सिवनी, 07 मार्च। पेंच टाईगर रिजर्व सिवनी के खवासा स्थित पर्यटन सुविधा केन्द्र के कांफ्रेंस हाल में शुक्रवार 07मार्च 25 को प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा के अनुरूप भविष्य में वन्यजीव प्रबंधन हेतु रणनीति विषय पर 02 दिवसीय राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यशाला का शुभारंभ प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव के मुख्य आतित्थ्य में संपन्न हुआ।

पेंच टाईगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने शुक्रवार शाम को हिस को बताया कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की विगत बैठक मे निर्देश दिया था कि मध्यप्रदेश में कुशल वन्यजीव प्रबंधन के कारण बाघ, तेंदुओं एवं अन्य वन्यप्राणियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है और आज मध्यप्रदेश देश का टाइगर स्टेट, लेपर्ड स्टेट, वल्चर स्टेट एवं घड़ियाल स्टेट है किन्तु यह भी सत्य है कि वन्यप्राणियों की बढ़ती संख्या प्रबंधकीय चुनोतियों को पैदा कर रही है। भविष्य में इनकी संख्या बढ़ने के कारण चुनौतियां भी बढ़ेंगी। अतः भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये देश भर के विशेष विशेषज्ञों को बुलाकर भविष्य की इन चुनौतियों से निपटने की रणनीति बनानी होगी। इस हेतु प्रदेश के वरिष्ठ वन अधिकारियों की देश के वन्यजीव विशेषज्ञों के साथ एक कार्यशाला का आयोजन होना चाहिए।
इसी क्रम में पेंच टाईगर रिजर्व में शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में दीप प्रज्वलन एवं अतिथियों के स्वागत एवं परिचय सत्र के बाद वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने अपने शुभारंभ उद्बोधन में संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास के जन समुदाय को वन्यजीव प्रबंधन में शामिल करने पर जोर दिया। इस हेतु जन समुदाय के सहयोग से ईको पर्यटन गतिविधियों का संचालन करना चाहिए। संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीव बाघ की संख्या में वृद्धि के फलस्वरूप क्षेत्रीय वनक्षेत्रों में भी बाघ की संख्या में वृद्धि हुई हैं अतः क्षेत्रीय वनों में भी जनसमुदाय को जोडते हुए पर्यटक गतिविधयों का संचालन कर वन्यजीव प्रबंध में मदद प्राप्त कर स्थानीय जन समुदाय को आजीविका मुहैया करायी जा सकती हैं। मध्यप्रदेश में वन्यजीव बाघ एवं तेंदुओं की संख्या में वृद्धि के चलते वनों के सीमांत ग्रामों में मानव-तेंदुआ द्वंद की घटनाओं में वृद्धि हुई हैं इनसे निपटने हेतु जनजागरण एवं अन्य उपाय किये जाने की आवष्यकता हैं। साथ ही उन्होने मध्यप्रदेष में चल रहे गौर, चीतल, नीलगाय और कृष्ण मृग प्रतिस्थापन के कार्य का भी उल्लेख किया।
मुख्य वन्यजीव अभिरक्षक शुभरंजन सेन ने बताया कि भविष्य में प्रभावी वन्यजीव प्रबंधन हेतु अगले वित्तीय वर्ष से कोर एवं बफर क्षेत्र हेतु पृथक-पृथक बजट आवंटन किया जायेगा। वन एवं वन्यजीव बाहुल्य मध्यप्रदेश में आगामी वर्षाे में 2500 वर्ग कि.मी. का वनक्षेत्र संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाना प्रस्तावित हैं। संरक्षित क्षेत्रों के बाहर तथा क्षेत्रीय वन एवं वन्यजीव कारीडोर क्षेत्रों में वन्यजीव प्रबंधन एक बडी चुनौती हैं इस हेतु विचार मंथन कर कारगर रणनीति बनाने की आवश्कता हैं।
मध्यप्रदेश के सेवानिवृत मुख्य वन्यजीव अभिरक्षक एच.एस.पाबला द्वारा मानव वन्यजीव सहजीवन पर प्रकाश डाला गया। डा. राजेश गोपाल द्वारा कार्यशाला में वर्चुअली जुडकर भविष्य में वन्यजीव प्रबंधन हेतु संरक्षित क्षेत्रों का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन कर प्रबंधकीय तत्वों को प्राथमिकता देना होगा। डा. सुहास कुमार द्वारा कार्यशाला में वर्चुअली जुडकर संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीव प्रबंधन पर जोर दिया गया।
बी.एम.एस राठौर द्वारा जैविविधता संरक्षण हेतु जनजागरण एवं वन्यजीव बाहुल्य भू-परिदृष्य को दृष्टिगत रखते हुए प्रभावी उपाय करने पर जोर दिया गया। डा.रमन सुकुमार द्वारा अपने प्राकृतिक आवास से बाहर आकर जन समुदाय से टकराव का कारण बनने वाले हाथियों पर विस्तार पूर्वक प्रकाष डालकर बचाव के उपायों पर चर्चा की। डा. वाय.वी झाला द्वारा वन्यजीव प्रबंधन की लेण्डस्केप थीम पर विस्तार से बताया गया। डा. अनीस अंधेरिया द्वारा बाघ, वन एवं समुदाय के सहअस्तित्व में उत्प्रेरक का काम करने वाली अवधारणा पर बल दिया गया।
डा. क्लेमेंट बेन द्वारा वन्यजीव संरक्षण में खासकर महाराष्ट्र में कम्यूनिटी रिजर्व (समुदाय आरक्ष) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। गोकुल द्वारा वन्यजीव प्रबंध की हाथी प्रबंध थीम के बारे में बताया गया। वरिष्ठ वैज्ञानिक बिवास पांडव द्वारा मध्य भारत में मानव-हांथी द्वंद में हुई मौतों का विश्लेषण करते हुए बचाव एवं सुरक्षा उपायों के बारे में बताया गया। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. के रमेश ने मध्यप्रदेश में भविष्य के वन्यजीव प्रबंधन में तकनीकी विकल्पों के बारे में बताया गया। सिवनी जिले में वनरक्षक के रूप में कार्यरत एवं राष्ट्रीय ख्याति के कार्टूनिस्ट श्री रोहित शुक्ला के द्वारा बनाया गया अग्नि सुरक्षा संबंधी पोस्टर का विमोचन भी किया गया। यह पोस्टर डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. इंडिया द्वारा पेंच प्रबंधन के सहयोग से जारी किया गया।
कांफ्रेन्स में पधारे संपूर्ण अतिथियों, विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों को चार समूहों में बांटा गया। जिनमें भू-परिदृश्य प्रबंध ,वन्यजीव आवास प्रबंध ,मानव-वन्यजीव द्वंद,समुदाय संलग्नता है।
उक्त चारों समूह कल उपरोक्त चारों विषयों पर गहन विचार-विमर्श करेंगे, विचार विमर्श से प्राप्त निष्कर्षों का भविष्य की वन्यजीव प्रबंध रणनीति के निर्माण में उपयोग किया जावेगा। शुक्रवार को कार्यशाला का प्रथम दिवस था कार्यशाला शनिवार 08मार्च 2025 को भी जारी रहेगी कार्यशाला के अंत में शनिवार की शाम 06 बजे प्रेस के साथ ब्रीफिंग कार्यक्रम भी रखा गया हैं।
कार्यशाला में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) एवं मुख्य वन्यजीव अभिरक्षक शुभरंजन सेन सहित मध्यप्रदेश शासन वन विभाग के अन्य प्रधान मुख्य वन संरक्षक, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र संचालक टाईगर रिजर्व, वनसंरक्षक वनमंडलाधिकारी तथा राष्ट्रीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक, वन विभाग के वन्यजीव क्षेत्र के विषेषज्ञ सेवानिवृत अधिकारी एवं गैर शासकीय संगठनों (एन.जी.ओ.) के पदाधिकारी सहित 80 से अधिक प्रतिभागी इस कार्यशाला में शामिल हुए।

 

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