मौसम आधारित कृषि सलाह
सिवनी, 12 जनवरी। कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.एन.के.सिंह ने वर्तमान में लगी फसलों के बारे में सलाह देते हुए बताया कि गेहूं में द्वितीय सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद कल्ले निकलते समय करें। समय से बोई गई गेहूं फसल में तृतीय सिंचाई बुवाई के 60 से 65 दिन बाद तने में गांठे बनते समय करें। गेहूं में यूरिया का उपयोग सिंचाई उपरांत ही करें जिससे कि नत्रजन का समुचित उपयोग हो सके। यूरिया का छिडकाव (टॉप ड्रेसिंग) सुबह या रात में ना करें, क्योंकि ओस की बूंदों के संपर्क में यूरिया आने से पौधे की पत्तियों को जला देती है। अतः दिन के समय यूरिया का छिडकाव करें।
चने के खेत में कीट नियंत्रण हेतु टी आकार की खूटियां (30-40 हैक्टेयर) लगाएं। फली में दाना भरते समय खूटियां निकाल लें। चने की फसल में चने की इल्ली का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर (1-2/लार्वा/मी.पंक्ति) से अधिक होने पर इसके नियंत्रण हेतु कीटनाशी दवा फ्लूबेन्डामाइड 39.35 प्रतिशत एस.सी. कि 100 मिली./हैक्टेयर या इन्डोक्साकार्ब 15.8 प्रतिशत ई.सी. की 333 मिली/हैक्टेयर का 400 से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
मटर की फसल की पत्तियों पर धब्बे दिखाई दे तो मैनकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.फफूंदनाशी का 2 ग्राम या कार्बेंडाजिम 12 प्रतिशत + मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.फफूंदनाशी के मिश्रण का 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। मटर की फसल में चुर्णील फफूंदी (पाउडरी मिलड्यू) रोग के लक्षण जैसे पत्तियों, फलियों एवं तने पर सफेद चूर्ण दिखाई दे, तो इसके नियंत्रण के लिए फसल पर कैराथेन फफूंदनाशी का 1 मिली/ली. या सल्फेक्स 3 ग्राम/ली. पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें।
मसूर की फसल पर एन.पी.के.(19:19:19) पानी में घुलनशील उर्वरक को फूल आने से पहले और फली बनने की अवस्था पर 5 ग्राम/ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए जिससे की उपज में वृद्धि हो सके। मसूर फसल पर माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डायमिथोएट 30 ई.सी. 2 मिली./ली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.2 मिली/ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
शीतकालीन गन्ने की फसल में गुडाई करें। खेत में नमी की कमी होने पर सिंचाई कर सकते हैं।
सरसों में सिंचाई, जल की उपलब्धता के आधार पर करें। यदि एक सिंचाई उपलब्ध हो तो 50 से 60 दिनों की अवस्था पर करें। दो सिंचाई उपलब्ध होने की अवस्था में पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 50 दिन बाद एवं दूसरी 90 से 100 दिनों बाद करें। यदि तीन सिंचाई उपलब्ध है तो पहली 30 से 35 दिन पर व अन्य दो 30 से 35 दिनों के अंतराल पर करें। बुवाई के लगभग 2 माह बाद जब फलियों में दाने भरने लगे उस समय दूसरी सिंचाई करें। तापमान में तीव्र गिरावट के कारण पाले की भी आशंका रहती है इससे फसल बढवार और फली विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। इससे बचने के लिए सल्फर युक्त रसायनों का प्रयोग लाभकारी होता है। डाई मिथाइल सल्फोऑक्साइड का 0.2 प्रतिशत अथवा 0.1 प्रतिशतथायो यूरिया का छिडकाव लाभप्रद होता है। थायोयूरिया 500 ग्राम 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फूल आने के समय एवं दूसरा छिडकाव फलियां बनने के समय प्रयोग करें। इससे फसल का पाले से भी बचाव होता है। फसल पर माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर डायमिथोएट 30 ई.सी. 2 मिली/ली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.2 मिली/ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
सिंचाई हेतु स्प्रिंकलर, रैन गन, ड्रिप आदि का उपयोग करें जिससे जल का समुचित उपयोग हो सके। रबी दलहन में हल्की सिंचाई (4-5/से.मी.) करनी चाहिए क्योंकि अधिक पानी देने से अनावश्यक वनस्पतिक वृद्धि होती है और दाने की उपज में कमी आ जाती है। रबी फसलों की पत्तियों पर धब्बे दिखाई दे तो मेनकाजेब 2 ग्राध्लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। जब भी पाला पडने की आशंका हो या मौसम विभाग द्वारा पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए अथवा खेत की मेडों पर धुआं करें।
सरसों कि फसल में सफेद रतुआ या शवेत किट्ट रोग से ग्रसित पौधों कि पत्तियों कि निचली सतह पर 1.2 मि.मि. व्यास के स्वच्छ व सफेद रंग के छोटे छोटे फफोले (स्पॉट) बनते हैं। बाद में सफेद चूर्ण फैल जाता है, नियंत्रण के लिए मेंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी.फफूंदनाशी या रिडोमिल एम.जेड. 72 डब्लू.पी.दवा का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करेंil
हिन्दुस्थान संवाद
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