नरवाई जलाने से कम होती है मिट्टी की उर्वरक क्षमता
नरवाई का उपयोग कर जैविक खाद भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट बनाने की सलाह
भोपाल/सिवनी, 30 मार्च। कृषि विभाग द्वारा जिले के किसानों को गेहूँ की फसल काटने के बाद बचे हुए अवशेष (नरवाई) नहीं जलाने की अपील की गई है। नरवाई में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। इसके कारण विगत वर्षो में तथा वर्तमान में भी गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं घटित हुई हैं तथा व्यापक सम्पत्ति की हानि हुई है। खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनसम्पत्ति व प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु आदि नष्ट हो जाते हैं।
नरवाई में आग लगाने से खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्य जीवाणु नष्ट होते हैं जिससे खेत की उर्वरा शक्ति भी धीरे-धीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है। नरवाई जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। यदि फसल अवशेषों, नरवाई को एकत्र कर जैविक खाद जैसे भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए तो यह बहुत जल्दी सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर खाद बना सकते है। इसके अतिरिक्त खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश के रूप में बचत की जा सकती है। किसान द्वारा हार्वेस्टर के साथ स्ट्रारीपर का उपयोग किए जाने से पशुओं के लिये भूसा व खेत के लिये बहुमूल्य पौषक तत्वों की उपलब्धता बढने के साथ मिट्टी की संरचना को बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है।
हिन्दुस्थान संवाद
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