आहार के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव का होता है निर्धारण : नीलेश शास्त्री
सिवनी, 19 दिसंबर। कलयुग में सभी तरह से कमाए गए धनों का फल मिलता है, यहां तक कि चोरी व अन्य दुष्कृत्यों से कमाए धन का दान करने से भी पुण्य मिलता है लेकिन यह मनुष्य को पशु योनि में ले जाता है जहां आप देखते हैं कि कुछ जानवर सुख के साथ जीवन व्यतीत करते हैं यहीं उस धन का उन्हें लाभ है।

पैसा सुपाड़ी के समान है जिसे खाकर कोई भी व्यक्ति अपना पेट नहीं भर सकता। भगवान कहते हैं जो मिला है उसी में कर्म करते रहो, पं नीलेश शास्त्री ने रसिकों से कहा कि संतोष ही सबसे बड़ा धन है, जो भगवान के अनुग्रह से उन्हें प्राप्त हुआ है।
धन भगवान की कृपा है और उसका अनुभव हमें करना चाहिए जैसे माता बच्चे को उतना ही दूध पिलाती है जितना वह पचा सकता है वैसे ही भगवान भी योग्यता व सामथ्र्य के अनुसार धन प्रदान करते हैं जो मिला है उसका सदुपयोग करें इसी में जीवन सफल बनाने का प्रयास होना चाहिए।
कंस के संबंध में बताते हुए पं नीलेश शास्त्री ने कहा कि कंस को बताया गया था कि उनकी मृत्यु का कारण काला होगा जिसके बाद वे हर काली वस्तु से डरने लगे यहां तक कि उन्हें नींद तक नहीं आती थी। नींद दरअसल भगवान की दी हुई करूणा है जिसका अनुभव हर व्यक्ति २४ घंटे के दौरान एक बार अवश्य करता है।

कोई व्यक्ति कितना भी भौतिकवादी हो वह नींद की करूणा के बिना अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता, नींद की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, सोने व जागने का समय तय हो ताकि हम अपनी जीवनचर्या को बेहतर बना सकें।
नींद के दौरान व्यक्ति निष्काम हो जाता है जहां उसे काम, क्रोध, मोह, लोभ जैसे विकार स्पर्श भी नहीं कर सकते, भगवान की गोद में जाना ही निद्रा है जिसके बाद उठकर पुन: व्यक्ति अपने दैनिक कृत्यों को पूरी उर्जा के साथ पूर्ण करता है।
वृद्धाश्रम सिवनी में जारी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन आहार पर प्रकाश डालते हुए पं नीलेश शास्त्री ने बताया कि आहार के आधार पर ही स्वभाव का निर्माण होता है। शुद्ध आहार से शुद्ध विचार बनते हैं जो अच्छे व्यवहार मे ंपरिवर्तित होते हैं जिसके बाद परिवार भी शुद्ध होता है इससे समाज को भी लाभ मिलता है।
अन्न की निंदा का शास्त्रों में निषेध रखा गया है क्योंकि अन्न से ही ह्दय का निर्माण होता है और मनुष्यों को जीभ के स्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण उस अन्न का सेवन करना चाहिए जो उन्हें अच्छे विचार प्रदान करे। मांसाहार करना सबसे बुरा है क्योंकि आहार की शुद्धि ही जीवन शैली में परिवर्तन लाने मे महत्वपूर्ण योगदान देती है। जैसे वाटिका में सीताजी से मिलने गए भगवान हनुमान ने राक्षस प्रवृत्ति के रावण द्वारा उगाए गए फलों को ग्रहण किया लेकिन उससे पूर्व उन्होंने इसका भोग भगवान को लगाया जिससे वे फल भी शुद्ध हो गए, तात्पर्य यह है कि शुद्धता के साथ मेहतन से कमाए गए धन से ग्रहण किए गए अन्न का प्रभाव अलग ही होता है जो सभी मनुष्यों को अपने जीवनकाल में अपनाना चाहिए।
हिन्दुस्थान संवाद
