क्या नवाज शरीफ के इस वादे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे भरोसा?
नई दिल्ली। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने शनिवार को अपना घोषणापत्र जारी किया है, जिसमें पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बहाल करने, भारत के साथ शांति को बढ़ावा देने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और आतंकवाद को लेकर शून्य-सहिष्णुता का रुख अपनाने का वादा अपनी देश की जनता से किया है।
लेकिन, सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या नवाज शरीफ की बातों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भरोसा करेंगे? ये सवाल इसलिए है, क्योंकि नवाज शरीफ ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, जब नरेन्द्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिल्ली का दौरा भी किया था।
वहीं, नवाज शरीफ के एक बुलावे पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान भी गये थे और दोनों नेताओं के बीच संबंध दोस्ताना भी हो गये थे, लिहाजा अब जबकि करीब करीब तय है, कि सेना ने इस बार नवाज शरीफ को सत्ता में लाने का फैसला किया है, तो क्या वो भारत के साथ शांति बहाल कर पाएंगे?
पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव
पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव होने वाले हैं और उससे करीब दो हफ्ते पहले नवाज शरीफ की घोषणापत्र में भारत के साथ शांति बहाल करने की बात कही गई है, जो यकीनन बहादुरी भरा कदम है, क्योंकि ऐसा शायद पहला पाकिस्तानी चुनाव है, जिसमें भारत का मुद्दा ज्यादा गूंज नहीं रहा है।
नवाज शरीफ के घोषणापत्र में भारत से शांति पर विशेष जोर दिया गया है। लेकिन, शर्त ये रखी गई है, कि इसके लिए भारत को 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के फैसले को बदलना होगा।
हालांकि, इसमें कोई शक नहीं, कि भारत अब इस फैसले को नहीं बदलेगा, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है, कि नवाज शरीफ की कोशिश देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाना है और इसके लिए भारत से कारोबार शुरू करना ही पहला और आखिरी विकल्प होगा और घोषणापत्र से पहला बड़ा संकेत यही मिलता है।
नई दिल्ली ने पाकिस्तान से कहा है, कि जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य और अभिन्न अंग है। अनुच्छेद 370, जिसे 2019 में भारत की संसद द्वारा निरस्त कर दिया गया था, पूरी तरह से भारत के साथ-साथ इसके संविधान का मामला है।
क्या भारत को करना चाहिए भरोसा?
पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने कई बार सार्वजनिक तौर पर भारत से अच्छे संबंध बनाने की वकालत की और पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का दावा है, कि जनरल बाजवा के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान की यात्रा भी करने वाले थे, लेकिन इमरान खान की जिद के बाद ये यात्रा नहीं हो पाई थी।
जनरल बाजवा चाहते थे, कि भारत के साथ कारोबार बढ़ाया जाए, ताकि पाकिस्तान आर्थिक संकट से बाहर निकले और देश जिस महंगाई से दो-चार हो रहा है, उससे पीछा छूटे, लेकिन इमरान खान से उनके मतभेद की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।
लेकिन, जनरल बाजवा के कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक सीमा पर संघर्षविराम समझौता हो गया और अब करीब 4 साल हो गये हैं, जब भारत और पाकिस्तान की सीमा पर सैन्य स्तर पर करीब करीब शांति है। दोनों तरफ से गोलीबारी बंद है।
लेकिन, पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर भारत को लेकर क्या सोचते हैं, उनकी सोच अभी तक सार्वजनिक नहीं हो पाई है, लिहाजा नवाज शरीफ के लिए भारत की तरफ दोस्ती की हाथ बढ़ाना तो आसान होगा, लेकिन हाथ बनाए रखना कितना आसान होगा, ये फिलहाल नहीं कहा जा सकता है।
दूसरी तरफ, भारत ने पाकिस्तान को लेकर सख्त रूख बनाए रखा है और भारत ने साफ कह रखा है, कि आतंकी गतिविधियों के बीच भारत बातचीत नहीं करेगा, लेकिन क्या नवाज शरीफ, जो एक मंझे हुए राजनेता हैं, उनके कार्यकाल के दौरान भारत थोड़ा नरमी बरतेगा और बातचीत करेगा, ये देखने वाली बात होगी!
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