राष्ट्र निर्माण में अल्पसंख्यकों की भूमिका अहम, सुई से लेकर जहाज बनाने तक- डॉ. नौशाद आलम

2022_12image_06_24_49004246711.jpg

नई दिल्‍ली । अंतर्राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्र निर्माण में अल्पसंख्यकों की भूमिका विषय पर जीडी कॉलेज बेगुसराय के दिनकर सभागार में एकदिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का उद्घाटन जीडी कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर राम अवधेश सिंह ने किया। वही डॉ. आसिफ अली ने अध्यक्षता की।

शिक्षा के बिना अधिकार को पाना मुश्किल

जीडी कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर राम अवधेश सिंह ने कहा कि शिक्षा के बिना अधिकार को पाना मुश्किल है। इसलिए सबसे पहले सही शिक्षा हासिल करना जरूरी है, तभी अपने अधिकारों को पहचान पाएंगे। इस देश के राष्ट्र निर्माण में आजादी से लेकर आज तक अल्पसंख्यकों की अहम भूमिका रही है।

देश में अल्पसंख्यकों की भूमिका धूरी के समान है। जीडी कॉलेज से भौतिकी विभाग के विभागा अध्यक्ष डॉ. नौशाद आलम ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में अल्पसंख्यकों की भूमिका सुई बनाने से लेकर जहाज बनाने तक, खेती करने से लेकर चांद और मंगलग्रह तक और मजदूरी करने से लेकर डॉक्टर इंजीनियर, साइंटिस्ट बनने तक और सरहदों पर फौजी बनकर विभिन्न रूपों में योगदान दिया है।

अपने हक के लिए लड़ाई लड़ना भी जरूरी

उर्दू विभाग की विभाग अध्यक्षा डॉक्टर शहर अफरोज ने कहा कि अल्पसंख्यकों की भूमिका देश को आजाद करने में जितनी रही है। उतनी ही भूमिका आज भी किसी न किसी रूप में अल्पसंख्यक समुदाय बखूबी भी निभा रहा है।

एपीएसएम, कॉलेज,बरौनी से उर्दू विभाग की फैकल्टी, डॉक्टर सोगरा रिजवी, ने कहा कि देश आज बुरे दौर से गुजर रहा है। आपस में इत्तेहाद और मुत्तफिक होना जरूरी है। अपने अधिकारों को पहचानना जरूरी है। अपने हक के लिए लड़ाई लड़ना भी जरूरी है। हमारे अधिकारों की हक तल्फी हो रही है। इस आवाज़ को और भी बुलंद करना होगो।

बेगुसराय शहर की वार्ड पार्षद डॉक्टर शगुफ्ता ताजवर ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों के बजट में 38 % की कटौती की है, जो सरासर नाजायज है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन है। छात्र-छात्राओं का स्कॉलरशिप बंद कर दिया गया। मौलाना आजाद फैलोशिप बंद कर दिया गया। यह बड़े ही दुख की बात है।

18 दिसंबर का दिन मुकर्रर किया

सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और जल्द से जल्द अल्पसंख्यकों के अधिकार और योजना को पूरी तरह से जमीनी स्तर पर पहुंचाने का काम करना चाहिए। डॉक्टर आसिफ अली ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा की संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 में विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाने की घोषणा करते हुए 18 दिसंबर का दिन मुकर्रर किया।

इस आयोजन के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदायों के हक, अधिकारों की रक्षा तथा राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को चिन्हित किया जाता है। साथ ही उनकी भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति, परंपरा की हिफाजत सुनिश्चित करने की प्रतिज्ञा दोहराई जाती है।

राष्ट्रीय भाषा को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान

18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव पारित कर अल्पसंख्यक की वैश्विक परिभाषा दी थी। किसी भी देश में रहने वाले ऐसे समुदाय जो संख्या की दृष्टि से कम हो और सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर हो। जिनकी प्रजाति, धर्म, भाषा आदि बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय भाषा को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हो, तो ऐसे समुदायों को उसे राष्ट्र राज्य में अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए।

2014 के बाद उनमें से कई को समाप्त कर दिया गया

भारत सरकार ने मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखा है। विगत केंद्र सरकारों द्वारा अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित थी। 2014 के बाद उनमें से कई को समाप्त कर दिया गया। अल्पसंख्यक उत्थान बजट में इस वर्ष 38% कटौती कर केंद्र सरकार ने अपने अल्पसंख्यक विरोधी चेहरे से नकाब हटा दिया है।