जय श्री बालाजी चन्द्रमा और शनि की युति

दो ग्रहों की युति से कितने फल मिलते है देखते है. सबसे पहले तो गृह के खुद के कारकत्व के आधारित देखते है. चंद्रमा जल है शनि कर्म है. अतः कर्म जल से संबधित हो सकता है. चंद्रमा जल है शनि विष है अतः जल विष युक्त हो सकता है.चंद्रमा मन है शनि बेराग है अतः मन में बेराग की भावना हो सकती है.चंद्रमा मन है शनि वायु है अतः माता को वायु विकार हो सकता है.शनि कर्म है चन्द्र यात्रा है अतः कर्म में यात्रा हो सकती है.शनि कर्म है चन्द्र कलंक है अतः काम में बदनामी हो सकती है.शनि कर्म है चन्द्र liquid है अतः कार्य इससे सम्बन्धित हो सकता है. चंद्रमा ठंडा है शनि वायु है अतः अस्थमा हो सकता है.चंद्रमा चंचल है शनि कर्मा है अतः जातक काम एक स्थान में न रहे.चंद्रमा माता है शनि कर्म है अतः माता काम करने वाली हो सकती है.चन्द्रमा माता है शनि पापी गृह है अतः माता को कोई तकलीफ हो सकती है. माता के सुख में कमी आदि आदि इस तरह दो ग्रहों के कराक्त्व्ग कितने होंगे आप सोच सकते है.अब बात करते है भाव कारकत्व चन्द्रमा चतुर्थ का कारक है और शनि छह, आठ, दस और बारह का कारक. अब देखिये इन दोनों की युति से कितने फल मिलेंगे. चंदरमा चतुर्थ का करक है और शनि छह का यानी मन में रोग. चन्द्रमा मन है और शनि अष्टम का कारक . अतः मन में मृत्यु का भय. अष्टम गुप्त ज्ञान का भी कारक है अतः मन में गुप्त ज्ञान की इछ्या. द्वादश नाश और मोक्ष और खर्च सब है अतः मन में ये सव विचार आना ही है.इसके अलावा जिन जिन भावो के सामी होगी उनके फल अलग. मतलब न जाने कितने फलित मिलेंगे.इस योग को पुनार्फु योग भी कहते है . चूँकि ये योग स्त्री कुंडली में शादी शुदा जिंदगी के लिए कष्टकारक होता है काफी. पृथु यश कहते है ये योग तीन, छह, दस, एग्यारह में हो तो राजयोग देता है. अर्थात उपचय भावो में अर्थात पापी ग्रहों का पापी भावो में शुभ फल. मतलब कोई भी योग अशुभ नहीं है न ही शुभ.अब हम जान सकते है की दो ग्रहों की युति के कितने फल मिलेंगे. और हमें की सीधे नवांश नक्षत्र की तरफ आँखे गडाए रहते है. वही बात चोबे जी छब्बे जी बनने गए और दुबेजी बन के वापिस लोट आये. चन्द्रमा और शनि की बात आते ही सीधा विष योग याद आता है. वही ढाक के तीन पात. हमे भेड़ चाल चलने की आदत है. और खासकर ज्योतिष मे तो जितना रट्टा मारा जाता है उतना कही भी नहीं. विष दोष है ठीक है कोई दिक्कत नहीं लेकिन kya इस युति मे सिर्फ विष दोष होगा या कुछ और….!!! हमारे आचार्यो ने इस योग के जी भर के शुभ फल भी बताये है. दो ग्रहों की युति के कई तरह से फल मिलते है. एक तो गृह के खुद के नैसर्गिक गुण. एक गृह जिस भाव का कारक होता है वो फल. एक वो जिस भाव का स्वामी होता है उसका फल. ये तीन फल हमने मुख्या रूप से देख सकते है. तो इस तरह बहुत सारे असीमित फल मिलते है दो ग्रहों की युति के. फिर वो युति किस लग्न मे. किस भाव मे , किस राशी मे बन रही है वो भी देखनी पड़ेगी. विष योग तो अपने आप बन गया चन्द्रमा मन है और शनि पापी गृह . नीरसता का गृह. चंद्रमा जल है और शनि विष. तो विष योग तो अपने आप बन गया. लेकिन दूसरा पहलू ये भी है की शनि कर्म है और चन्द्रमा से शनि का बल कई गुना बढ़ जायेगा और जातक का शनि बहुत ज्यादा बलवान हो जायेगा मलतब कर्म बलवान हो गए. शनि पाप गृह है और तीन , छह और इग्यारह मे योग बना तो बहुत ही अच्छा फल देगा क्योंकि पाप गृह यहाँ बहुत अच्छे फल देते है. इस तरह कई तरह के फल हमें मिलेंगे. फिर सिर्फ एक फल क्यों. सबसे पहले देखिये की चन्द्रमा के अपने कारकत्व और शनि के अपने कारकत्व. चन्द्रमा मन, मस्तिष्क, रौशनी, जल , माता आदि का कारक हुआ. शनि हो गया कर्म, नीच जाती, कूड़ा , अँधेरा , बेराग आदि आदि का. शनि मन, चन्द्रमा बेराग. मतलब बन मे बेराग उत्पन्न हो गया. हमारे आचार्यो ने इसका वर्णन भी किया है की चंद्रमा शनि के नवांश या द्रेश्कान मे हो तो सन्यास योग बनता. चंद्रमा जल हो गया शनि विष हो गया बन गया विष योग. चंद्रमा मन हो गया शनि कर्म हो गया जातक के मन मे कर्म की भावना रहेगी. चंद्रमा रौशनी का कारक है शनि अँधेरे का कारक है शनि बलवान हुआ तो रौशनी को ढक लेगा. चंद्रमा जल है शनि विष है या नशा है. अर्थ त्रिकोण मे शराब या कोई और नशा करवा दे. अब बात करते है एक गृह कारकत्व और एक भाव कारक के. चंद्रमा के हमने कारकत्व और भाव कारक शनि को मान लेते है. शनि ६, ८, १२ भाव का कारक है. चंद्रमा कोमल, चंचल गृह है. तीन पापी भावो के कारक शनि के साथ मिल गया तो पीड़ा दो मिलेगी ही. छह भाव रोग का, आठ भाव आयु का, बारह भाव नाश का. और वैसे देखा जाए तो आठ भाव गुप्त ज्ञान का. छह भाव आपके धर्म के कर्म का. बारह भाव आपके मोक्ष का या धर्म के सुख का भी हुआ. अब दो भाव कारको की बात कर लेते है. चंद्रमा चतुर्थ का कारक है और शनि त्रिक भावो का. अब देखिये यहाँ श्री कृष्णमूर्ति जी ने इसको पुनार्फु योग बोला है. स्त्री कुंडली मे ये युति द्रष्टि अच्छी नहीं मानी गयी है. कारण अगर हमने स्त्री जातक अध्याय पढ़ा है तो हमें पता है की स्त्री के लिए चार भाव मुख्या रूप से देखना चाहिए. कारण चतुर्थ भाव परिवार या पारिवारिक वृद्धि का होता है. एक स्त्री के लिए उसका परिवार ही सब कुछ होता है. स्त्री मे करुना पुरुष से कही ज्यादा होती है. परिवार मतलब शादी हुई. परिवार की वृद्धि. सप्तम का कर्म. अब इस चतुर्थ के साथ पापी शनि की युति द्रष्टि हो गयी तो कितनी पीड़ा होगी.अब हम बात करेंगे एक गृह के कारकत्व और एक भावेश की. चंद्रमा जल है, मन है. माता है, जनता है. अब मान लो वृषभ लग्न है तो शनि नो और दस का कारक हुआ. तो मन के साथ भाग्य और कर्म जुड़ गया . मतलब मन कर्म और धर्म दोनो मे लीं रहेगा. वही कर्क लग्न हुआ तो मन के साथ जीवन साथी और गुप्त ज्ञान जुड़ गया. अब बात करते है दो भावेशो की. मिथुन लग्न मे चंद्रमा द्वितीयेश होगा और शनि अष्टमेश और नवमेश मतलब द्वितीयेश की युति अष्टमेश और नवमेश के साथ यानी धन के साथ अकस्मात धन और भाग्य जुड़ा हुआ होगा. यहाँ दो भावेशो का मिलन हो गया. अब बात करते है एक भाव कारक और एक भावेश का फल. जैसे चंद्रमा चतुर्थ भाव का कारक है और शनि समझ लो मकर लग्न मे लग्न और द्वितीय भाव का कारक हो गया . तो यहाँ मन के साथ लग्न और धन भी जुड़ गया.इस तरह दो ग्रहों की युति पे हमने छह तरह से फलित देखा. दो ग्रहों के कारकत्व. दो भावेशो के कारकत्व. दो भाव कारको के कारकत्व. एक गृह एक भाव कारक का फल. एक गृह एक भावेश का फल. एक भाव कारक एक भावेश का फल.उसके बाद देखिये चन्द्र अपने आप पे एक लग्न है तो चन्द्र लग्न सीधा सीधा प्रभावित होगा.

अब चर्चा करते है हमारे आचार्यो ने kya kya कहा है इस योग के बारे मे. ज्यादातर आचार्यो ने सभावना जताई है की चंद्रमा शनि की युति हो तो जातक कुस्त्री का पुत्र होता है. चंद्रमा माता है और शनि पाप प्रभाव तो होना ही है ये तो. लेकिन ये तभी होगा जब आप पूरी कुंडली का विश्लेषण करेंगे. शुभ ग्रहों की युति साथ मे हो या द्रष्टि हो तो ये योग भंग हो जायेगा इसलिए फलित सोच समझ के करे. जातक गाडियों का व्यवसाय करता है. चंद्रमा चतुर्थ का कारक है तो गाडी हो गयी और शनि कर्म है तो हो गया गाडी घोड़ो का काम. एक चार का कारक है और एक दसम का भी. प्रथुयाश कहते है उपचय भावो मे ये युति हो तो जातक सर्व संपन्न होता है. अब देखो माइनस माइनस प्लस हो गया. उपचय भाव और शनि और चन्द्र की युति ने ने राजयोग भी दे दिया. लग्न मे युति जातक को दास या आलसी बनती है. अब एक तो शनि आलसी गृह उपर से चंद्रमा भी बैठ गया तो करेला और निम् चढ़ा. उपर से दो दो लग्न शनि से प्रभावित हो गए. एक तो लग्न और एक चन्द्र लग्न. लेकिन मेरे ख्याल से शनि स्व उच्च हुआ तो ये एक राजयोग बन जायेगा क्योंकि एक तो दो दो लग्न बलवान हो गए उपर से शनि को चंद्रमा से बल मिल रहा है और केंद्र बल भी मिल रहा है. शनि तो वैसे भी दास भी है. चतुर्थ मे ये योग बने तो जातक नोक, जहाज, मुक्त, मणि आदि से जीविका चलाता है. जातक श्रेष्ठ होते है और लोग उनकी प्रशंशा करते है. अब देखिये यहाँ कितनी साड़ी बाते निकल के आएगी. एक तो चन्द्र यहाँ दिग्बली हो गया चतुर्थ मे. दूसरा इससे शनि भी बलवान हो गया. चतुर्थ भाव तो जल का है तो नोका आदि का काम अपने आप हो ही गया. चत्रुथ भाव जनता का, चंद्रमा जनता का, चंद्रमा चतुर्थ का कारक, शनि भी जनता का कारक तो जनता मे तो प्रसिद्ध होना ही है. सप्तम मे ये युति हो तो जातक नगर, ग्राम या पुर मे महान राजा से सम्मानित होता है. लेकिन स्त्री सुख मे कमी रहती है. अब सप्तम स्त्री का कारक है तो ये तो होना ही है. लेकिन बाकी चीजो के लिए कितना अच्छा योग है. एक तो चन्द्र लग्न बन जायेगा और दुसर सप्तम भाव भी इन सब चीजो का कारक भी है और दसम से दसम भी है इसकी चर्चा हम पहले कर चुके है. दसम मे ये युति हुकूमत करने वाला , शत्रुओ का नाश करे , विख्यात हो किन्तु माता अच्छी स्त्री न हो. सेना नायक तो अपने आप हो गया दसम भाव कर्म और राजा का जो है. दूसरा मातक भाव पे शनि द्रष्टि डालेगा और चंद्रमा के साथ हो तो भाव और भाव कारक को पीड़ित तो करेगा ही पापी होनी की वजह से लेकिन जातक को विख्यात तो कर ही देगा. तो हमने उपर थोड़ी सी कोशिश की है दो ग्रहों की युति के फल की . शुभ और अशुभ फल सब निकल के आये है. इस तरह असंख्य फल निकलेंगे इन दो ग्रहों की युति के. इसलिए हमें रट्टा न मार के ज्योतिष को इष्ट कृपा से अपने अंदर उतरना चाहिए.

श्री अवनीश सोनी
ज्योतिष एवम वास्तु शास्त्री
जिला सिवनी (म.प्र.) मो. 7869955008

follow hindusthan samvad on :