आदिनाथ जयंती पूरे जिले में लोग सादगी के साथ घर-घर में मनायेंगे

सिवनी, 04 अप्रैल। जैन समाज के प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ जिन्हें ऋषभ देव के नाम से भी जाना जाता है, प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी जैन समाज उनकी जन्म जयंती अपने-अपने घरों में सादगी के साथ मना रहा है।
उल्लेखनीय है कि जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज के पुत्र ऋ षभ देव हुये। भगवान ऋ षभ देव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत वर्ष पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे। बाहुबली और सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती ब्रह्मी और अन्य 98 पुत्रों की माता का नाम यशावती था। ऋ षभ देव भगवान की आयु 84 लाख पूर्व की थी जिसमें से 20 लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ।
गौरतलब है कि भगवान आदिनाथ (ऋषभ देव) के पूर्व लोगों की सभी समस्या का निदान कल्पवृक्ष से मांगकर पूर्ण हो जाते थे। और तपस्या के लिए जब भगवान आदिनाथ वन में जाने लगे तो उनके क्षेत्र की जनता ने उनसे कहा कि स्वामी आपके जाने के बाद हम अपना जीवन कैसे जीयेंगे, तब उन्होंने तीन सिद्धांत दिये थे,उन्होंने कहा कि असी-तात्पर्य,देश की रक्षा करो,सैनिक बनों,मसी-तात्पर्य,लेखन कार्य करो अथवा वाणिज्य का कार्य करो,कृषि,तात्पर्य,कृषि का कार्य करो। इन सिद्धांतो को लेकर उनके क्षेत्र की जनता ने सवाल किया कि कृषि करने में हिंसा होगी,तब उन्होंने कहा कि आप जानबूझकर हिंसा नही कर रहे है। बल्कि अपने एवं लोगों की भूख मिटाने के लिए यह कार्य कर रहे है। जो क्षमा तुल्य है। और इसके बाद उन्होंने 6 माह तक तप किया। और वापस आने पर इच्छु रस (गन्ने का रस) का आहार ग्रहण किया। तब से आज तक यह परंपरा चली आ रही है। उनके बाद जैन धर्म के 24 तीर्थकर हुये,जिन्होंने अंहिसा का परचम लहराया।
प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी दिगम्बर जैन मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुये अभिषेक,पूजन,पाठ किया जावेगा। साथ ही उनके आदर्शो पर चलने हेतु लोगों को प्रेरणा दी जायेगी। 

हिन्दुस्थान संवाद

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