भगवान ने जन्म-दात्री होने का अद्भुत तोहफा केवल नारी को दिया है – एडीजी श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव

एमएलबी महाविद्यालय में “लैंगिक न्याय एवं कानूनी प्रावधान पर हुआ सेमीनार

सिवनी, 25 मार्च।समाज के निर्माण में स्त्री और पुरूष दोनों का समान महत्व है। पीढ़ियों के निर्माण में माता एवं पिता दोनों का ही योगदान होता है। भगवान ने जन्म-दात्री होने का अद्भुत तोहफा केवल नारी को दिया है, समाज का अस्तित्व स्त्री-पुरुष दोनों से है, इसलिए जेंडर जस्टिस को समझने के लिए जीवन के व्यवहारिक पहलुओं पर विचार करना जरूरी है। यह बात अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्रीमती प्रज्ञा रिचा श्रीवास्तव ने आज मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग एवं शासकीय एमएलबी कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय भोपाल के महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में “लैंगिक न्याय एवं कानूनी प्रावधान” विषय पर आयोजित सेमिनार में कही। अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉक्टर श्रीमती ममता चंसोरिया ने की।

श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने कहा कि जीवन के आरंभिक काल में महिला-पुरुष साथ-साथ रहते थे। पुरुष वर्ग पर सुरक्षा, पोषण एवं देखरेख की जिम्मेदारी होने से बाहुबली की भूमिका में रहा। परंतु आज समाज तकनीकी आधार विकसित हो रहा है। समाज की इस आधुनिक व्यवस्था में अब बाहुबल का स्थान शिक्षा और तकनीकी ने ले लिया है। इसलिए पुरुष का बाहुबल उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना महिलाओं का आर्थिक स्वावलंबन जरूरी है। अवसरों की समानता को एजुकेट, एनहांस और एंपावरमेंट की आवश्यकता है। नारी स्वभाव से ही संवेदनशील है। बदलाव परिवार की खुशहाली के लिए हो, इसलिए अपने नारीत्व के साथ आगे बढ़ो और सामर्थ्यवान बनो। जब किसी आसुरी शक्ति से देवता हारे हैं, कोई न कोई देवी शक्ति अवश्य आई है। समाज को चलाने, उन्नति के शिखर पर पहुँचाने के लिए नारी का चिंतन ही आधार हैं।

संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास श्री सुरेश तोमर ने जेंडर विभेद तथा उसके धरातलीय कारणों को रेखांकित करते हुए बताया कि किसी समाज विशेष की आर्थिक समृद्धि और समाज में महिलाओं की बेहतर सामाजिक स्थिति का कोई तालमेल नहीं है। शहरी क्षेत्र, आर्थिक रूप से समृद्धशाली क्षेत्र का लिंगानुपात हम कम पाते हैं, जबकि प्रकृति के निकट जीवन-यापन करने वाले समुदायों खासकर जनजातीय समुदाय में लिंगानुपात अपेक्षाकृत रूप से बेहतर है। श्री तोमर ने लैंगिक भेदभाव के संबंध में 1950 के दशक में किए गए अध्ययनों की जानकारी देते हुए कहा कि उस समय महिला को सेकंड जेंडर की मान्यता थी, अब बदलाव का समय है, हम सबको मिलकर इसके लिए चिंतन करना चाहिए।

महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. ममता चंसोरिया ने लैंगिक न्याय एवं कानूनी प्रावधान पर चिंतन के लिए सभी का आह्वान किया। महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. धनंजय वर्मा ने सेमिनार में सुझाव दिया कि महिलाओं को हाउसवाइफ के स्थान पर “हैप्पी होममेकर” संबोधन दिया जाए। संचालन डॉ. दीपा एस. कुमार प्राध्यापक अंग्रेजी ने किया तथा डॉ. उषा कुकरेती प्राध्यापक समाजशास्त्र में आभार व्यक्त किया।

सचिव मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग श्री शिवकुमार शर्मा, समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. विराज दुबे, महाविद्यालय की महिला प्रकोष्ठ के संयोजक एवं सेमिनार की समन्वयक डॉ. दीप्ति श्रीवास्तव, डॉ. अनिला मित्रा, डॉ. सीमा रायजादा सहित महाविद्यालय के प्राध्यापक तथा छात्राएँ बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान संवाद

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