पहली शिक्षा माँ के द्वारा देने के बाद दूसरी शिक्षा पिता और तीसरी शिक्षा गुरू देता है, सनातन धर्म में माता का स्थान प्रथम है-द्विपीठाधीश्वर
सिवनी, 28 फरवरी। दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज आज अपनी जन्मस्थली गुरू रत्नेश्वर धाम से गमन कर अपनी तपोस्थली परमहंसी झोतेश्वर पहुंच गये हैं। गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरी में संपन्न हुई श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के आयोजकों ने उनके गमन के पूर्व उनकी पादुका का पूजन किया और कार्यक्रम में किसी भी तरह की गलती और त्रुटि होने की क्षमा याचना की।
ज्ञातव्य है कि द्विपीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी का 18 फरवरी को आगमन हो गया था। 19 फरवरी को कलश यात्रा के साथ ही भागवत कथा का शुभारंभ हुआ, जो 27 फरवरी तक चला। इस आयोजन में 19 फरवरी से 27 फरवरी तक सुबह से रात तक महाप्रसाद के रूप में भंडारे का आयोजन किया गया था। अंतिम दिवस 27 फरवरी को पूर्णाहूति के बाद महाभोग के रूप में आयोजित हुये भंडारे में तीन प्रकार के मिष्ठान का वितरण भी किया गया था।
महाराजश्री अपनी तपोस्थली गमन करने के पूर्व 27 फरवरी को पादुका पूजन के लिये राहीवाड़ा, बंडोल और गुरू परिवार के सदस्य संजय भारद्वाज एवं राजकुमार खुराना के निवास भी पहुंचे थे। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व संजय भारद्वाज के ज्येष्ठ भ्राता रविन्द्र नारायण भारद्वाज का निधन हो गया था। वे भी गुरू के कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे। इस बार जब वे दिघोरी आये तो संजय भारद्वाज के परिजनों से मिलकर अपनी संवेदना भी व्यक्त की। यहां से वे जिला कांग्रेस के अध्यक्ष राजकुमार खुराना के निवास भी पहुंचे और वहाँ भी उनकी पादुका का पूजन हुआ। उल्लेखनीय है कि श्री खुराना के पिता रामनाथ खुराना और उनकी एक बहन का निधन भी कोरोना काल में हुआ था। श्री खुराना और उनके परिवार को भी महाराजश्री ने अपनी संवेदना व्यक्त की।
अपनी जन्मस्थली से प्रस्थान करने के पूर्व महाराजश्री की पादुका का पूजन आयोजन समिति के सदस्यों के द्वारा किया गया और आपसे इस कार्यक्रम में हुई किसी भी त्रुटि और गलती के लिये क्षमा याचना भी की। आयोजकों ने महाराजश्री के निज सचिव ब्रम्हचारी सुबुद्धानंद जी का पुष्पहार पहनाकर और आरती उतारकर आशीर्वाद प्राप्त किया। ब्रम्हचारी सुबुद्धानंद जी ने आयोजकों को कहा कि गुरूधाम का आयोजन परम आनंद वाला रहा है, इसके लिये आपने आयोजन समिति के सदस्यों को राम नाम का गमछा और ज्योर्तिमठ की दैनंदिनी भी भेंट स्वरूप दी। महाराजश्री का काफिला यहाँ से ग्राम घोटी पहुंचा जहां एक बघेल परिवार में महाराजश्री का पादुका का पूजन किया गया। आप यहां से अपने ननिहाल जिसे हम आज मातृधाम के नाम से जानते हैं, वहाँ पहुंचे और माँ ललितेश्वरी की पूजा अर्चना की एवं अपनी जननी का भी स्मरण किया। यहाँ आपने उपस्थित भक्तों को अपना आशीर्वचन भी दिया।
महाराजश्री यहाँ से सिवनी आकर रास्ते में पड़ने वाले उनके शिष्य दुर्गा अग्रवाल के परिजनों को अपना आशीर्वाद दिया और वहाँ से वे गुरू रत्ेनश्वर धाम में आयोजित हुये इस कार्यक्रम के सदस्य संजय बघेल के निवास पहुंचे। वहाँ भी उनकी पादुका का पूजन किया गया। महाराजश्री यहाँ से नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के निवास पहुंचे, यहाँ भी महाराजश्री की पादुका का पूजन किया गया। यहाँ से वे जिला भाजपा अध्यक्ष आलोक दुबे के निवास पहुंचे, जहां आपने अपने परिवार के साथ महाराजश्री की पादुका का पूजन और आरती की। इस अवसर पर यहाँ श्रीमती नीता पटेरिया, प्रेम तिवारी, संतोष अग्रवाल, ज्ञानचंद सनोडिया, नरेन्द्र ठाकुर, सुरेश भांगरे, रूद्रदेव राहंगडाले, विनोद सोनी, रामलाल राय, किशोर सोनी, रामजी चंद्रवंशी, संजय सोनी, अभिषेक दुबे, लालू राय और ओमप्रकाश तिवारी आदि उपस्थित रहे।
महाराजश्री यहाँ से काली चौक में पं. रविशंकर शास्त्री के निवास पहुंचे, जहां पर आपकी पादुका का पूजन ज्योतिष पीठ के आचार्य पं. रविशंकर शास्त्री ने किया। यहाँ उल्लेखनीय है कि काली चौक में स्थित यह निवास महाराजश्री को उन दिनों की याद दिलाती है जब महाराजश्री संन्यासी और दण्डी संन्यासी के रूप में यहाँ पहुंचकर निवास किया करते थे। इस भवन को पं. रविशंकर शास्त्री जिन्हें हम बड़े शास्त्री के रूप में पहचानते हैं, उन्होंने महाराजश्री को प्रदान कर दिया है। आपने यहाँ पहुंचने पर काली चौक के आसपास के निवासियों ने भी महाराजश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया। महाराजश्री यहाँ से अपनी तपोस्थली परमहंसी झोतेश्वर के लिये रवाना हो गये।
द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद अपनी ननिहाल पहुंचे और यहाँ स्थापित माता राजराजेश्वरी की पूजा अर्चना कर अपनी माता का स्मरण किया
मातृधाम। द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद अपनी ननिहाल पहुंचे और यहाँ स्थापित माता राजराजेश्वरी की पूजा अर्चना कर अपनी माता का स्मरण किया। यहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं को धर्मोपदेश देते हुये आपने कहा कि मनुष्य के जीवन में मातृ देव भव:, पितृ देव भव: और आचार्य देव भव: का महत्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य की प्रथम गुरू उसकी माता है। माता मनुष्य को बाल्यकाल में हर बुरी आदतों से बचाती है। माता ही मनुष्य को बताती है कि उसे क्या खाना चाहिये, क्या नहीं खाना चाहिये, क्या करना चाहिये, क्या नहीं करना चाहिये। माता मनुष्य को कैसे रहना चाहिये, यह सिखाती है। पहली शिक्षा माँ के द्वारा देने के बाद दूसरी शिक्षा पिता और तीसरी शिक्षा गुरू देता है। सनातन धर्म में माता का स्थान प्रथम है। जैसे हम सीता-राम, राधा-कृष्ण ही बुलाते हैं। महाराजश्री ने कहा कि यह क्षेत्र राजराजेश्वरी माता के यहाँ विराजित होने के बाद से खुशहाल और समृद्धशाली हो गया है। महाराजश्री ने मातृधाम के संचालकों से कहा कि यहाँ संस्कृत पाठशाला चलती थी, जो किन्हीं कारणों से बंद हो गयी है, उसे दोबारा प्रारंभ किया जाये, क्योंकि बच्चों को प्रथम शिक्षा माता के स्थान से ही मिलनी चाहिये।
हिन्दुस्थान संवाद
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