वृक्ष, गौवंश और परंपरा को बचाए रखने के लिए 11 साल से जला रहे कंडों की होली
गुना 28 मार्च । वृक्ष बचाने, गौवंश को सहेजने और आस्था को पल्लवित करने का संदेश देने वाली तलैया मोहल्ला की होलिका 84 वर्ष पुरानी है। अंबे चौक की बड़ी होलिका के नाम से विख्यात इस प्राचीन होलिका की विशेषता है कि यहां सिर्फ कंडों का उपयोग किया जाता है। पहले यहां लकड़ी का प्रयोग होता था। आयोजन से जुड़े लोग बताते हैं कि हर साल होलिका बनाने में एक क्विंटल लकड़ी बढ़ा दी जाती थी। लेकिन कुछ समय बाद आयोजकों ने पर्यावरण को ध्यान में रखकर तय किया कि पेड़ बचाने होलिका दहन भी लकड़ी के स्थान पर कंडो के प्रयोग से किया जाएगा। इससे गौवंश की महत्ता भी लोगों को पता चलेगी और वृक्ष भी बचेंगे। यहीं से शहर की ज्यादातर होलिका में कंडों के उपयोग की शुरुआत होने लगी।
2011 में पहली बार जलाई थी कंडों की होली
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन को मूर्त रूप देने वाली जय मां पाताल भैरवी उत्सव समिति (जूनियर) के अध्यक्ष सौरभ कलावत बताते हैं कि एक दशक पहले जब इस होली के 74 वर्ष पूर्ण हुए, तब इसमें 74 क्विंटल लकड़ी लगाई गई थी। उस समय इतनी लकड़ी इकठ्ठा करना मुश्किल था, तब जय मां पाताल भैरवी उत्सव समिति के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता विक्की छारी ने आयोजकों के साथ तय किया कि अगर ऐसे ही वर्ष बढ़ते जाएंगे, तो इस मिथक के चलते पर्यावरण को काफी नुकसान होगा।इसके बाद वर्ष 2011 में पहली बार कंडे की होली जलाने का फैसला लिया गया। प्राचीन और बड़ी होलिका होने के नाते कई छोटी होलिका दहन समितियां भी इसका पालन करती हैं। शुरुआत में कंडों की होली के निर्णय की आलोचना भी हुई कि पौराणिक कथाओं में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ईश्वर के भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उसे अपनी गोद में लेकर लकड़ी की चिता पर बैठी थीं। हालांकि, आलोचना की चिंता किए बिना लिया गया निर्णय बाद में कारगर साबित हुआ और इस एकमात्र कंडे की होलिका को देखकर आधा सैकड़ा से भी ज्यादा स्थानों पर कंडे की होलिका दहन का प्रचलन शुरू हो गया।
गोबर के कंडे जलाने से खत्म होते हैं नकारात्मक दोष
पं. वीरेंद्र शर्मा बताते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोबर के कंडे काफी लाभकारी होते हैं। घर में यदि इनका उपयोग किया जाए, तो कोई बाधा परेशान नहीं कर सकती। इसमें घी, कपूर, पीली सरसों जलाने से वास्तु दोष दूर होता है। घर में गोबर के कंडे का धुंआ करने से कभी भी नकारात्मक दोष उत्पन्न नहीं होते हैं। विज्ञान से चीजों को समझने वाली नई पीढ़ी को गौवंश से मिलने वाले बेस्ट प्रोडक्ट गोबर से बनने वाले कंडो और गाय की महिमा को भी ऐसे धार्मिक आयोजनों के माध्यम से आसानी से समझाया जा सकता है।
सिर्फ एक लकड़ी का उपयोग होता है
आज भी तलैया मोहल्ले की बड़ी होलिका के दहन के बाद इसकी आग से आसपास की होलिका का दहन होता है। इस होली में होली में डांढ़े के अलावा लकड़ी का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। गुना के लिए मिसाल बनी इस होलिका का धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ही पारंपरिक रूप से दहन किया जाता है।
हिन्दुस्थान संवाद
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