संस्कार देने वाले माता-पिता भाग्य से प्राप्त होते हैं : नीलेश शास्त्री
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कृष्ण जन्मोत्सव का हुआ भव्य आयोजन
सिवनी, 18 दिसंबर। कलयुग मे ऊगते सूर्य को प्रणाम करने की परंपरा बन गई है लेकिन सनातन धर्म में डूबते सूर्य को प्रणाम करने का विधान बताया गया है, जिसका कारण भी स्पष्ट किया गया है कि भास्कर भगवान १२ घंटे तक प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करते हैं ऐसे में उनका सम्मान करना आवश्यक है।
मृत्यु के संबंध में जानकारी देते हुए पं नीलेश शास्त्री ने वृद्धाश्रम में उपस्थित रसिकों को बताया कि मृत्यु निश्चित है लेकिन वह अनिश्चित भी है क्योंकि जन्म लिए व्यक्ति की मौत तय है परंतु वह कब कैसे और कहां होगी यह अनिश्चित होता है।
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शंख, मंत्रोच्चार एवं जयकारा लगाने के साथ घंटी बजाने का विधान विज्ञान से जुड़ा हुआ है जहां पुराणों में स्पष्ट किया गया है कि जैसे वाहनों का हार्न बजाने से रास्ता साफ होता है वैसे मंत्रोच्चार करने से जीवन का मार्ग भी साफ होता है और मनुष्य सुख शांति को प्राप्त करता है।
पं नीलेश शास्त्री ने माता-पिता के संबंध में बताया कि संस्कार देने वाले माता-पिता भाग्यशाली संतानों को ही प्राप्त होते हैं ऐसे में जीवन को भजनमय बनाते चलो, समय का इंतजार करना व्यर्थ है क्योंकि आयु बढऩे के साथ भक्तिभाव अवश्य उत्पन्न होते हैं लेकिन उसे पूर्ण करना संभव नहीं हो पाता है।
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धु्रव भगवान ने उच्च कुल में जन्म लिया था लेकिन इसी वंश में बेन राजा भी पैदा हुए जो सत्संग के मार्ग पर नहीं चलते थे। ऐसा अक्सर होता है कि कीचड़ में कमल खिलता है और जो दीपक प्रकाश को उत्पन्न करता है उसी से काजल भी पैदा होती है। कहने का अर्थ यह है कि कभी कभी कुलीन परिवार में भी असंस्कार व्यक्ति जन्म ले लेते हैं जिन्हें समाज तो क्या स्वयं परिवार भी स्वीकार नहीं करता।
बेन राजा नास्तिक होने के साथ पूजनपाठ से भी घृणा करते थे, ऋषियों ने उन्हें समझाने का प्रयास कि लेकिन नास्तिक बेन मद में इतना चूर था कि वह नास्तिकता को ही प्रचारित करता रहा। अंत में ऋषियों ने राजा बेन को नष्ट किया और उसके अंश से भगवान ने जन्म लिया।
नास्तिक व्यक्ति समाज में अंधकार फैलाता है ऐसे में आस्तिक के पास देश व समाज का नेतृत्व होना आवश्यक है, जब तक बेन राज्य करता रहा तब तक अकाल की स्थिति बनी रही लेकिन भगवान ने पृथोजी के रूप में जन्म लिय और राज्य धन धान्य से परिपूर्ण हो गया।
व्यक्ति श्री के बिना अर्थहीन है, सनातन धर्म में श्री व श्रीमति का उपयोग इसीलिए किया जाता है क्योंकि श्रीयुक्त व्यक्ति का ही समाज में मान सम्मान होता है, उसकी आभा समाज को नई दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जैसे दिन में चांद अवश्य दिखाई देता है लेकिन उसका सूरज के समक्ष अस्तित्व नही रहता वैसे ही श्रीहीन व्यक्ति समाज में कभी भी प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं कर पाता है। पृथोजी राजा ने भगवान से दस हजार कान का वरदान मांगा जिसका कारण बताते हुए राजा ने कहा कि हे भगवान समाज की सेवा करने के दौरान यदि मैं आपके सत्संग का लाभ नहीं ले पाऊंगा ऐसे में कान ही एक ऐसा माध्यम होंगे जिनसे आपके नाम की ध्वनि मेरी अंर्तात्मा तक पहुंच सकेगी।
व्यक्ति को मूल स्वरूप में बना रहना चाहिए क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा है कि जन्म से संस्कारी व्यक्ति भी कुसंग में पड़कर अपना मूल स्वरूप खो देता है जिससे उसकी समाज में प्रतिष्ठा नहीं रहती। माता पिता को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके बच्चे किस संगत में अपना समय व्यतीत कर रहे हैं जो ऐसा कर पाते हैं उनकी संतान ना केवल संस्कार वान होती है बल्कि वह परिवार का नाम भी समाज में रोशन करती है।
वृद्धाश्रम सिवनी में जारी भागवत कथा के चौथे दिन में आज धूमधाम के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान भक्तजनों ने मिष्ठान, फल व अन्य सामग्रियां भी भागवत कथा के दौरान श्रीकृष्ण भगवान को अर्पित की।
हिन्दुस्थान संवाद
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