यदि अंत:करण शुद्ध हो जाये तो देह त्यागने के बाद आत्मा ब्रम्ह में समा जाती है, आत्मा ही ब्रम्ह है-शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

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सिवनी, 26 फरवरी। गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरी में चल रही श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का विश्राम आज गीता उपदेश के बाद होगा। महाराजश्री निर्धारित समय दोपहर बाद 4 बजे गीता उपदेश पर प्रवचन देंगे। राजा परीक्षित के अमरत्व का रहस्य बताते हुये कहा कि आत्मा ही ब्रम्ह है और जब अंत:करण शुद्ध हो जाता है तो यही आत्मा भगवान के स्वरूप में समा जाती है। ऐसे ही राजा परीक्षित की आत्मा ब्रम्ह में समाहित हो गई थी और उन्हें सद्गति प्राप्त हुई।
ज्ञातव्य है कि 19 फरवरी से गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरी में श्रीमद् भागवत कथा को दो पीठ के शंकराचार्य स्वयं अपने मुखारबिंद से प्रवाहित कर रहे थे। पवित्र पावनी वैनगंगा के तट के किनारे बसे ग्राम दिघोरी जिसे महाराजश्री ने गुरू रत्नेश्वर धाम का नाम दिया है, में धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ प्रतिदिन कथा श्रवण करने पहुंच रही है। आज भागवत कथा का नौवा दिन होगा और आज ही पूर्णाहूति के बाद महाराजश्री गीता उपदेश पर प्रवचन देंगे और भंडारे के बाद इस यज्ञ का समापन हो जायेगा। पूर्णाहूति के बाद यज्ञ स्थल की परिक्रमा करने का बहुत बड़ा महत्व है। साथ ही इस अनुष्ठान के आखिरी दिन होने वाले भंडारा जो महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जायेगा, इसका भी अपना महत्व है।


दो पीठ के शंकराचार्य महाराजश्री ने आज बताया कि जब राजा परीक्षित ने भागवत कथा का श्रवण कर लिया तो उनका अंत:करण शुद्ध हो गया। आत्मा को ही ब्रम्ह कहा जाता है। आत्मा शरीर नहीं है और मरने वाला शरीर है। आत्मा शरीर को छोड़कर परमात्मा में विलीन हो जाती है। यही स्थिति राजा परीक्षित के साथ हुई, क्योकि मोक्षदायिनी श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने से उनका मन शुद्ध हो गया और देह त्यागकर आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई और राजा परीक्षित को सद्गति प्राप्त हुई। मनुष्य देह त्यागने के बाद भी यश और अपयश के कारण उसका नाम जीवित रहता है। कैकई ने जो कृत्य किया था उसके कारण कोई भी अपनी पुत्री का नाम कैकई नहीं रखा जाता, यह अपयश का प्रमाण है और यश का प्रमाण यह है कि जिनकी यश कीर्ति है उनका नाम माता-पिता अपने बच्चों का रखना चाहते हैं।
महाराजश्री ने आज की कथा में कल्पवृक्ष, सत्यभामा द्वारा कृष्ण के दान और सुदामा चरित्र का भी वर्णन किया। आपने कहा कि नारदमुनि ने सत्यभामा को कहा कि यदि तुम अगले जन्म में भी कृष्ण को पाना चाहती हो तो उनका दान कर दो। सत्यभामा नारद जी की बातों में आ गई और दान करने के बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वे उन्हें वापिस लेना चाहने लगी। नारद जी ने कहा कि इतने तौल के बराबर सोना-चांदी और रत्न रख दो मैं इन्हें किये गये दान से मुक्त कर दूंगा। सत्यभामा ने महल के सारे सोने-चांदी और रत्नों को तराजू के दूसरे पल्ले में रख दिया तब भी भगवान कृष्ण तुल नहीं पा रहे थे। अंतत: वहां रूकमणी पहुंची और उन्होंने तुलसी का एक पत्र रखकर तौल कांटे को बराबर कर लिया और कृष्ण को वापिस ले लिया। यह घटना सत्यभामा को आये हुये अभिमान को तोड़ने की थी। महाराजश्री ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुये कहा कि चोरी करने की सजा हर किसी को भुगतनी पड़ती है। बाल्यकाल में सुदामा ने चोरी से भुने हुये चने खा लिये परिणाम स्वरूप आगे जाकर उन्हें दरिद्रता भोगनी पड़ी। उनका जीवन इतना अभाव में हो गया कि न तो उनके पास खाने का था और न ही पहनने का। काफी कष्टों के बाद सुदामा की पत्नी ने उन्हें अपने मित्र कृष्ण से सहायता लेने की कही और उन्हें एक पोटली में चावल रखकर भेजा। सुदामा जब कृष्ण के महल पहुंचे तो उन्होंने उनका आत्मीय और भावभीना स्वागत किया और पोटली में रखे चावल को दो मुट्ठी भरकर खाकर दो लोक उन्हें प्रदान कर दिया। इसके बाद सुदामा एश्वर्य के साथ जीवन यापन करने लगे।
महाराजश्री ने कथा के अंत में राजा परीक्षित के अमरत्व की कथा सुनाते हुये कहा कि आत्मा शरीर नहीं है और आत्मा शरीर को और शरीर आत्मा को नहीं देख सकता। यदि अंत:करण शुद्ध हो जाये तो देह त्यागने के बाद आत्मा ब्रम्ह में समा जाती है। आत्मा ही ब्रम्ह है। महाराजश्री ने कहा कि श्रीमद् भागवत सप्ताह पुराण का विश्राम कल सुबह पूर्णाहूति के बाद होगा और निर्धारित समय पर गीता उपदेश पर प्रवचन होंगे।

आदि शंकराचार्य का विजय स्तम्भ बने छिंदवाड़ा चौक में
दिघोरी। आदि शंकराचार्य भ्रमण करते हुये सिवनी के छिंदवाड़ा चौक से मठ मंदिर गये थे और यहां से ही नर्मदा के किनारे पहुंचे थे। सिवनी आदि शंकराचार्य के चरण पड़ने से पहले ही पवित्र हो चुकी है और अब स्वयं दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज हमारे सामने हैं। शंकराचार्य आश्रम परिवार के लोग और सनातनी छिंदवाड़ा चौक में आदि शंकराचार्य का विजय स्तम्भ बनाना चाहते हैं, शासन केवल छिंदवाड़ा चौक में जगह उपलब्ध करा दे, उसका निर्माण सनातनियों के द्वारा करा लिया जायेगा। साथ ही मठ मंदिर मार्ग का नाम आदि शंकराचार्य मार्ग रखा जाये। यह आग्रह ज्योतिष पीठ के आचार्य रविशंकर शास्त्री जी के द्वारा किया गया है, जिसकी सहमति करतल ध्वनि से सनातनियों के द्वारा दी गई है। आपके द्वारा शासन और प्रशासन से छिंदवाड़ा चौक में जगह उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

हिन्दुस्थान संवाद

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