राष्ट्रभाषा के मामले में राजनीति का बोलबाला, क्यों ना बने राष्ट्र भाषा हिन्दी

14 सितंबर हिन्दी दिवस पर विशेष

हिन्दी राष्ट्रभाषा की जब बात आती है तो भारत में राजनीति का बोलबाला जरूरत से ज्यादा है और यह दुःखद संयोग है कि भाषा भी इस देश में राजनीति की शिकार हो गई है, लेकिन हम इससे हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है, यह अपने जगह सही है देश कि अक्षुणता और अखंण्डता बनाये रखने के लिए अनिवार्य है। राष्ट्रभाषा बनाने से नही बनती, वह हवा, पानी, धूप चांदनी के साथ परिवर्तित परिवेश के साथ अपने आप ढलती चली जाती है, उसमें सैद्धान्तिंक पक्ष प्रबल होता है, संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रश और सौरसेनी के रूप में उसका विकास क्रम बाहय़ आवरण मात्र है, उसकी आत्मा तो भक्तों संतो द्वारा संवारी गई है।


आधुनिक काल में लखनऊ में सन 1916 में कांग्रेस के अधिवेश में मोहनदास करमचंद गांधी ने (तब वह महात्मा नहीं बने थे) जब आपने हिन्दी में भाषण दिया तो चारो और से इंग्लिश प्लीज की आवाजें आने लगी महात्मा गांधी ने बडी दृढता से कहा था कि मै हिन्दी में नही राष्ट्र की भाषा में बोल रहा हॅू। इस दौरान हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सचिव पुरूषोत्तम दास टंडन प्रभावित हुये उन्होंने गांधी जी के चरण पकडकर अगले वर्ष इंदौर सम्मेलन का सभापति बनाया।

यह कहना जिले के साहित्यकारों का है।


सिवनी जिले के वरिष्ठ साहित्यकार अरविंद मानव ने कहा जैसे अंग्रेज अपनी मादरी जुबान अंग्रेजी बोलते है और सर्वदा व्यवहार में लाते है वैसे ही हम सब हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने का गौरव प्रदान करें।
जगदीश तपिश ने कहा कि हिन्दी सब समझते है इसे राष्ट्र भाषा बनाकर हमें अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए।
अधिवक्ता अखिलेश यादव ने कहा कि महात्मा गांधी ने हिन्दी को राष्ट्र सेवा का पर्याय बनाकर अखिल भारतीय गरिमा प्रदान की और सारे राष्ट्र में स्वतंत्रता संग्राम का संचालन करने और राष्ट्र जागरण का विरद प्रदान किया।
डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी ने कहा कि दुनिया में कोई भी ऐसी विधा नहीं है जिसमें हिन्दी का भंडार ना भरा हो घूर सिंह चिरौजा ने कहा समस्त भाषाओं के साथ सौहार्द स्थापित करने के लिए त्रिभाषा फार्मुला विशेष उपयोगी है जैसे गैर हिन्दी राज्यों में हिन्दी की अनिवर्यता है वैसे हिन्दी भाषा राज्यों में किसी न किसी प्रादेशित भाषा की शिक्षा भी अनिवार्य होनी चाहिए।
आर.के. श्रीवास्तव ने कहा कि यदि हिन्दी को राष्ट्र की संपर्क भाषा बनाना है तो उसकी कीमत भी अदा करनी चाहिए संपर्क भाषा से अधिक अन्य प्रांतीय भाषाओं के बीच मध्यस्थता के द्वारा एकता अखण्डता स्थापना करना है।
संजय जैन संजू ने कहा कि संस्कृत ने जिस प्रकार एक युग में भारत भर को संपर्क भाषा बनकर एक सूत्र में जोडा था यह उत्तर दायित्व हिन्दी के ऊपर है, संस्कृत ने जिस प्रकार सभी भाषाओं को आत्मसात करते हुए लेकर और देकर आदान प्रदान करते हुए कार्य किया हिन्दी को भी करना होगा।
नरेन्द्र नाथ चट्टान ने कहा कि महात्मा गांधी ने अछुतोद्धार, खादी प्रचार, साहिबलाल दशहरिया ने कहा कि अंग्रेजी जिस तरह से अधिकार जमाते चली जा रही है और इलेक्ट्रानिक मीडिया जो दिखा रहा है,अगर उस चुनौती का सामना नही किया तो हमारे पैर उखड जायेगें। डॉ. अर्चना चंदेल ने कहा कि भारतीय हिंदी वृहत परिवार में संसार का सबसे भाषा परिवार भूमंडल में हिंदी है, कुल 350 करोड जनसंख्या में भारोपीय आर्य परिवार की भाषाएं बोलने वालों की संख्या 150 करोड है।
ज्ञात हो कि जिले के हिन्दी सेवी जो अब नहीं रहे उनमें डॉ. रामनारायण सिह मधुर, अवधेश निमेश शुक्ला, राजेन्द्र नेमा, अब्दुल खसदा नसीम असर मनोहर चौबे आकाश संत शर्मा, कौशलेश पाठक जानकी पाठक, बैजनाथ तन्हा।
वर्तमान मे सेवारत हिन्दी सेवी जिसमें छिद्दी लाल श्रीवास, डॉ अर्चना चंदेल ,मसूद आतिश, मो.मिंहाज कुरैशी, अरूण चौरसिया, प्रवाह महेन्द्र कौशल, नियाज अली, रामभुवन सिंह ठाकुर, दादू राम शर्मा, रविशंकर नाग आदि है।

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