सम्मान, वास्तविक सम्मान या औपचारिकता-संजय शर्मा
महिला दिवस पर विशेष
सिवनी। हम सभी किसी न किसी दिन कोई एक दिवस मनाते हैं क्या बाकी 364 दिन हम उस पर अमल करते हैं कहीं ना कहीं चूक अवश्य होती है। हमारे नैतिक संस्कारों में विचारों में ऐसा कौन सा अंतर आ जाता है जो हमें यह मजबूर करने पर विवश कर देता है कि हम भी औरों की तरह ही उसी दिशा में बढ़ जाते हैं। जो हमारी भारतीय संस्कृति के विपरीत होता है यह सकारात्मक सोच एकजुटता के साथ एक सोच हो जायें कि भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवताः अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे भोग की वस्तु समझकर आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किये जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
नारी हमारे जन्म से ही विभिन्न रूपों में प्राप्त होती है जन्म के समय माता कहलाती है रिश्तो में कभी बहन कहलाती है कभी हमारी प्रेमिका बन कर कभी पत्नी और भी अन्य रिश्ते जिसे वह बखूबी निभाती है क्या हम उन सभी रिश्तो को बरकरार रखते हैं।
माता का हमेशा सम्मान हो
मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं।
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए। लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व जिला एथेलेटिक संघ के सचिव है।
लेखक- संजय शर्मा
जिला एथेलेटिक संघ सिवनी