भारत का गौरव आत्मसम्मान पुन: स्थापित करने के संकल्प के साथ कार्य करने की आवश्यकता-जयंत सहस्त्रबुद्वे

सिवनी, 17 अप्रैल। स्वाधीनता आंदोलन में असंख्य व्यक्तियों ने अपने प्राणो की आहूति दी है बलिदानियों ने भारत को स्वाधीन कराने के लिये अपने प्राणों का बलिदान केवल अंग्रेजो को भगाने के लिये नहीं किया बल्कि देश के अभिमान को, गौरव को हमारे स्वर्णिम अतीत को पुन: विश्व में स्थापित करने के लिये उन्होंने अपने प्राणों का उत्कर्ष किया था। स्वाधीनता के दीवानों ने लंबे समय तक आक्रांताओं से संघर्ष करने के पश्चात देश को स्वाधीन कराया है । देश को आजाद हुये 75 वर्ष पूर्ण हो गये हम स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है । भारत को स्वाधीन हुये 75 वर्ष पूर्ण होने पर विचार किया जाना चाहिये कि क्या हम स्वाधीनता के लिये प्राणों का उत्कर्ष करने वाले अनेक यातनाओं को सहन करने वाले बलिदानियों, स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर शहादत देने वाले शहीदों के सपनों को साकार करने के लिये कितनी जिम्मेदारी से कार्य कर रहे है ? हम सबको आत्मविश्वास के साथ भारत का गौरव आत्मसम्मान पुन: स्थापित करने के संकल्प के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। जब भारत अपनी स्वाधीनता के सौ वर्ष पूर्ण करें तब भारत का मस्तक दुनिया में सबसे ऊँचा हो ।

इस आशय के विचार जिला मुख्यालय के स्मृति लाँन में स्वाधीनता के अमृत महोत्सव कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित अखिल भारतीय संगठन मंत्री विज्ञान भारती श्री जयंत सहस्त्रबुद्वे ने गत 15 अप्रैल को स्वाधीनता अमृत महोत्सव समिति सिवनी द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में उपस्थित प्रबुद्ध वर्ग को संबोधित करते हुये व्यक्त किये ।
स्वाधीनता अमृत महोत्सव समिति द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में समाज के विभिन्न वर्गो से प्रमुख व्यक्तियों, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, विद्यार्थी, सेवा निवृत कर्मचारी अधिकारी, लेखक साहित्यकार, आदि क्षेत्रों से प्रभावी व्यक्तित्व संपन्न व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया था । इस कार्यक्रम में स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वाले परिवार की सदस्य डाँ. विद्या जठार मुख्यातिथि थी स्वाधीनता अमृत महोत्सव समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिसोदिया द्वारा कार्यक्रम की अध्यक्षता की गयी । कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता के तैल चित्र के समक्ष एवं स्वाधीनता के अमर शहीदों को दीप प्रज्वलित कर श्रद्धांजलि दी गई। । एकल गीत के पश्चात कार्यक्रम के अध्यक्ष सुरेन्द्र सिसोदिया ने कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं मुख्य अतिथि के उद्बोधन के पश्चात कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित मुख्य वक्ता अखिल भारतीय संगठन मंत्री विज्ञान भारती के द्वारा स्वाधीनता के अमृत काल के विषय पर विस्तार से अपनी बात रखी ।


अपने उद्बोधन में सहस्त्रबुद्धे ने इतिहास के पन्ने पलटते हुए वर्षवार विस्तृत जानकारी दी। एकदम सहज अंदाज और सरल भाषा में उन्होंने कहा कि भारत ज्ञान और अर्थ और संस्कार तथा सभ्यता के क्षेत्र में अग्रणी रहा है अंग्रेजो के पूर्व से हमारी सभ्यता पर संस्कृति,और संपदा पर आक्रमण होते रहा है । उन्होंने कहा कि भारत में जितने भी आक्रमणकारी आये वे भारत को गुलाम बनाना चाहते थे और गुलाम बनाने के लिये आवश्यक था कि वे हमारे अभिमान को तोड़ते उस समय हमारी संस्कृति, संस्कार, ज्ञान और धन संपदा प्रचुर थी जिसे लूटा और नष्ट किया गया । मुगलों ने हथियारों से हम पर आक्रमण किए, हमारी धरोहरों को नष्ट किया। हमारे पुस्तकालयों को आग के हवाले किया। लेकिन अंग्रेजों ने हम पर हथियारों से आक्रमण नहीं किए बल्कि हमारी ज्ञान परंपरा को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट किया। उन्होंने हमारे पारंपरिक ज्ञान की इस तरह आलोचना की कि हमें यह लगने लगा हम पिछड़े हैं। इसके मूल में विज्ञान था। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने हमारी ज्ञान परंपरा से इसका प्रतिवाद किया।
मुख्य वक्ता ने स्वाधीनता के स्वा को लेकर लोगों को जागरूक होने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की खोई हुई सभ्यता को वापस लाने का प्रयास तथा जो स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहे। उनके मन में जो स्वतंत्र भारत का चित्र था। उसे साकार करने का प्रयास होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब आत्म निर्भर भारत की बात की, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि आगामी 25 वर्ष (2022-2047) ‘अमृतकालÓ होगा । श्री जयंत सहस्त्रबुद्वे ने कहा कि आत्मनिर्भर के साथ आत्मविश्वास भी आवश्यक है इस कालखण्ड में हमारे संकल्पों की सिद्धि, हमें स्वतंत्रता के 100 वें वर्ष तक लेकर जाएगी। प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण इसी पर आधारित है कि 25 साल बाद 2047 में; देश जब स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा, तब तक हमें उतना सामर्थ्यवान बनना होगा जितना हम शताब्दियों पूर्व थे हमें अपनी खोई हुई पहचान स्थापित करना है ।

हिन्दुस्थान संवाद

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